उत्तराखंड के जोशीमठ में इस साल दो जनवरी को हुए भू-धंसाव की मुख्य वजह इस क्षेत्र में क्षमता से ज्यादा निर्माण कार्य करने और बढ़ती आबादी को माना गया है। विभिन्न जांच एजंसियों ने अपने रिपोर्ट में मुख्य रूप से यह वजह बताई है। देश के आठ अलग-अलग बड़े संस्थाओं ने जोशीमठ हादसे की गहन जांच की थी और और विस्तृत अध्ययन के बाद अपनी रपट राज्य सरकार को सुपुर्द की थी। राज्य सरकार ने यह रपट जारी की है।
जोशीमठ का अध्ययन करने वाली एजंसियों में केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की) तथा राष्ट्रीय आपदा मोचक बल (एनडीआरएफ) आदि शामिल हैं। अपनी अध्ययन रपट में इन संस्थाओं ने जमीन के धंसने के कारणों के बारे में बताया है और इनके निदान के उपाय भी बताएं हैं। विभिन्न संस्थाओं ने अपनी रपट में बताया कि जोशीमठ कई सदियों पहले भूस्खलन के बाद एकत्र मिट्टी के ढेर पर बसा हुआ शहर है और आबादी का घनत्व अत्यधिक होने के कारण कई जगहों पर इसका असर अत्यधिक देखने को मिलता है। ज्यादा आबादी वाले स्थानों पर धंसाव ज्यादा देखने को मिलता है।
केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की) ने जोशीमठ के मौजूदा निर्माण कार्य पर कई तीखे सवाल प्रस्तुत किए हैं और संस्थान ने जोशीमठ के अलावा उत्तराखंड के अन्य पर्वतीय शहरों की भी समीक्षा करने के सुझाव दिए हैं। भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ) ने कहा है कि जोशीमठ में उन जगहों पर ज्यादा बड़ी दरारें मकानों और भू-धंसाव देखने में आया है, जहां पर घनी आबादी थी और निर्माण कार्य अधिक हुआ है तथा बहुमंजिले भवन बने हुए हैं, जिनमें जोशीमठ नगर पालिका क्षेत्र के मनोहर बाग और सिंहधर आदि क्षेत्र शामिल है।
केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की) ने जोशीमठ में 2 हजार 364 मकानों की जांच की है और इस क्षेत्र में 20 फीसद मकानों को उपयोग के लायक नहीं माना गया है, जबकि 42 फीसद मकान की और अधिक विस्तृत जांच किए जाने की बात कही गई है। साथ ही 37 फीसद मकानों को उपयोग के लायक पाया गया है। एक फीसद मकानों को गिराने की सलाह दी गई है।
विभिन्न संस्थानों ने अपनी रपट में चेताया है कि जोशीमठ में किसी भी तरह के निर्माण से पहले सभी मानकों को शक्ति के साथ लागू किया जाए वरना इस क्षेत्र में पुनर्निर्माण यहां के पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। पहले भी पुनर्निर्माण की वजह से यहां के पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। अध्ययन रपट में बताया गया है कि जोशीमठ में भूमि धंसने से करीब 65 फीसद मकान प्रभावित हुए हैं।
इस साल जनवरी में जोशीमठ भू-धंसाव के कारण 355 परिवारों को अन्य जगह स्थानांतरित किया गया है। अध्ययन रपट में पाया गया है कि जोशीमठ में 2 हजार 152 मकानों में से 1 हजार 403 मकान जमीन धंसने से प्रभावित हुए हैं और उनमें से 472 मकानों का पुनर्निर्माण किया जाना बेहद जरूरी है। 931 मकानों की मरम्मत किए जाने की अत्यधिक आवश्यकता है।
अध्ययन रपट में बताया गया है कि जिन मकानों में क्षति हुई है उसकी खास वजह इनके निर्माण में अच्छी गुणवत्ता वाली निर्माण सामग्री का इस्तेमाल नहीं करना, संरचनात्मक कमियां और खड़ी ढलानों पर इमारतों का निर्माण आदि सम्मिलित है। संस्थानों ने 10-15 सालों के लिए एक सुरक्षित जोशीमठ शहर में बनाने के लिए एक विस्तृत विकास योजना बनाने की आवश्यकता बताई है क्योंकि 1970 के दशक में भी जोशीमठ में भूमि धंसने की घटनाएं देखने को मिली थी। जोशीमठ हिमालयी शहर सबसे संवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र जोन 5 में सम्मिलित है इसीलिए यहां पर भूस्खलन और अचानक बाढ़ का खतरा ज्यादा रहता है।
वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार जोशीमठ में मरम्मत करने लायक मकानों के रखरखाव के लिए योजना बना रही है। इसके लिए एक परामर्श एजंसी का चयन करने का सिलसिला शुरू कर दिया गया है। उत्तराखंड शासन के आपदा सचिव रंजीत सिन्हा ने कहा कि इस दिशा में काम किया जा रहा हैं और जिसके परिणाम जल्दी देखने को मिलेंगे।
आइआइटी रुड़की के सिविल विभाग के प्रोफेसर सत्येंद्र कुमार मित्तल का कहना है कि सरकार को जोशीमठ को लेकर विभिन्न संस्थाओं की अध्ययन रपट को गंभीरता से लेकर व्यापक परियोजना बनानी चाहिए और उन्हें धरातल पर उतारा जाना चाहिए, तभी उत्तराखंड के पहाड़ बचेंगे।