ब्रह्मदीप अलूने
नेपाल की भारत पर आर्थिक निर्भरता को खत्म करने के लिए चीन नेपाल में शिक्षा और विकास की परियोजनाओं पर अरबों रुपए दांव पर लगा रहा है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का एक धड़ा देश में लोकतंत्र और समाजवाद को पसंद करता है, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री ओली की विचारधारा नेपाल की धार्मिक प्रतिबद्धताओं को खत्म कर साम्यवाद की तानाशाही संस्कृति को अपनाती दिख रही थी। इससे चीन को नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अवसर भी मिल गया था।
नेपाल को अपना राष्ट्रीय हित और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत और चीन से संतुलित संबंधों की जरूरत है और प्रचंड उस दिशा में सफल होते दिख रहे हैं। दरअसल, नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल प्रचंड ने चीन के साथ द्विपक्षीय समझौतों में जो दूरदर्शिता दिखाई है, वह भारत के लिए राहत देने वाली है। खासकर चीन की नई रणनीतिक पहल ‘ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव’ यानी जीएसआइ से दूरी बनाकर नेपाल ने यह संदेश दे दिया है कि वह चीन के दबाव में आकर अपनी भू-रणनीतिक जरूरतों को नजरअंदाज नहीं कर सकता। अगर नेपाल और चीन के सामरिक संबंध मजबूत होते है तो भारत का सुरक्षा संकट गहरा सकता था और चीन की यह कोशिश रही है कि नेपाल जीएसआइ का सदस्य बन जाए।
चीन एशिया में एक सैन्य संगठन बनाना चाहता है, जिसे वह ‘ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव’ कहता है। इसे चीन ‘क्वाड’ के खिलाफ खड़ा करना चाह रहा है, जिससे एशिया में उसका कूटनीतिक और रणनीतिक प्रभुत्व बढ़ सके। दिलचस्प है कि प्रचंड को चीन का पक्षधर समझा जाता है और चीन उन पर भरोसा भी दिखाता है, लेकिन नेपाल की आंतरिक राजनीति पिछले कुछ वर्षों से गहरे बदलावों से गुजर रही है और प्रचंड इस तथ्य को भलीभांति समझ गए हैं कि महज भारत विरोध के बूते उनकी राजनीतिक यात्रा मजबूती से नहीं चल सकती।
वहीं चीन हमेशा से नेपाल के साथ विशेष संबंधों का पक्षधर रहा है। तिब्बत पर कब्जे के बाद उसकी सीमाएं सीधे नेपाल से जुड़ गई हैं। चीन की नेपाल नीति का मुख्य आधार यह है कि नेपाल में बाह्य शक्तियां अपना प्रभाव न जमा सकें, जिससे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की सुरक्षा हो सके और नेपाल में भारत के प्रभाव को कम किया जाए। पिछले कुछ दशकों में उसने नेपाल में अनेक परियोजनाएं आक्रामक ढंग से शुरू कर तिब्बत से सीधी सड़क भारत के तराई क्षेत्रों तक बनाईं। रेल मार्ग नेपाल की कुदारी सीमा तक बनाया। नेपाली कम्युनिस्ट और माओवादी गुटों को आर्थिक और सैनिक मदद के साथ-साथ आम नेपालियों में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने की साजिशें रची गईं
इन सबके बीच भारत की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। भौगोलिक विषमताओं के बाद भी चीन नेपाल की सामरिक उपयोगिता को लेकर बेहद महत्त्वाकांक्षी रहा है। नेपाल में चीनी प्रभाव इतना गतिशील है कि वहां होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का नब्बे फीसद अकेले चीन से आता है। ये निवेश हाइड्रो-पावर, सीमेंट, प्राकृतिक दवाइयां और पर्यटन के क्षेत्र में हैं। नेपाल चीन से सबसे ज्यादा दूरसंचार उपकरण और पुर्जे, वीडियो, टेलीविजन, रासायनिक खाद, बिजली का सामान, मशीनरी, कच्चा सिल्क, रेडीमेड कपड़े और जूते खरीदता है। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि बेजिंग नेपाल में वामपंथ की मजबूती में मददगार रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में चीन ने नेपाल से रणनीतिक साझेदारियों को तेजी से बढ़ाकर हिमालय में भारत की सामरिक चुनौतियों को बढ़ाया है। प्रचंड के सत्ता में आने के अगले ही दिन नेपाल-चीन के बीच रेल संपर्क स्थापित करने के व्यावहारिक पहलू के अध्ययन के लिए चीन की एक तकनीकी टीम काठमांडो पहुंच गई और चीनी पक्ष ने रसुवागढ़ी-केरुंग क्रासिंग को खोलने का फैसला किया। केरुंग को काठमांडो से जोड़ने वाली रेलवे को संचार नेटवर्क के बुनियादी ढांचे के रूप में लिया गया है, जिसे नेपाल में ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत लागू किया जा सकता है। गौरतलब है कि नेपाल ने 2017 में दहल शासन के दौरान ही चीन के साथ ‘बेल्ट और रोड इनिशिएटिव’ समझौते पर सहमति बनाई थी।
नेपाल की भारत पर आर्थिक निर्भरता को खत्म करने के लिए चीन नेपाल में शिक्षा और विकास की परियोजनाओं पर अरबों रुपए दांव पर लगा रहा है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का एक धड़ा देश में लोकतंत्र और समाजवाद को पसंद करता है, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री ओली की विचारधारा नेपाल की धार्मिक प्रतिबद्धताओं को खत्म कर साम्यवाद की तानाशाही संस्कृति को अपनाती दिख रही थी। इससे चीन को नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अवसर भी मिल गया था।
भारत-नेपाल संबंधों की विशेषताओं को जानते हुए भी ओली ने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाने के लिए राष्ट्रवाद का दांव खेला था। नेपालियों की युवा पीढ़ी की उच्च आकांक्षाओं को जगाने और सामने लाने के लिए ओली ने राष्ट्रवाद का सहारा लेकर भारत से सीमा विवाद को बढ़ाया और इसे राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ दिया। तब उनका यह कदम अप्रत्याशित माना गया और उन्होंने ऐसा करके नेपाल के भविष्य को दांव पर लगा दिया। बल्कि भारत से लगती हुई लगभग अठारह सौ किलोमीटर की सीमा की शांति को भंग कर नई चुनौती पेश कर दी थी। 2016 में ओली ने जब चीन की यात्रा की थी तब नेपाल ने व्यापार और पारगमन क्षेत्र, ऊर्जा सहयोग और संपर्क क्षेत्र सहित दस समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। दरअसल, ओली ने भारत विरोध को बढ़ावा देने के लिए चीन से ये समझौते किए थे।
भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित नेपाल सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, भौगोलिक सीमाओं के साथ ही दोनों देशों के पारस्परिक संबंधों का आधार सांस्कृतिक एकता रही है। भारत नेपाल के महत्त्वपूर्ण घटनाक्रमों से न तो अछूता रह सकता है, न चुप्पी साध सकता है। अभी तक नेपाल भारत के लिए एक ऐसा भूभाग से जुड़ा देश है, जिसका लगभग सारा आयात-निर्यात भारत के रास्ते होता है। भारत के कोलकाता और अन्य बंदरगाहों से नेपाल को व्यापार और उसके लिए भारत होकर पारगमन की सुविधा प्रदान की गई है।
नेपाल जल और प्राकृतिक संसाधन की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। भारत में बहने वाली नदियों का उद्गम इन क्षेत्रों में पड़ता है। इस प्रकार, दोनों देश एक दूसरे पर निर्भर हैं। भारत लगातार नेपाल के विकास में अपना अहम योगदान देता रहा है। नेपाल के तराई क्षेत्रों में विकास परियोजनाएं, वहां भूकम्प के बाद पुनर्निर्माण परियोजनाओं के लिए 750 मिलियन डालर की लाइन आफ क्रेडिट समझौता, नेपाल को रक्षा क्षेत्र में हर संभव मदद देने जैसी घोषणाएं पिछले कुछ वर्षों में भारत द्वारा की गई हैं। भारतीय कंपनियां नेपाल में सबसे बड़े निवेशकों में से हैं। वहां लगभग 150 भारतीय उद्यम निर्माण, बैंकिंग, बीमा, ड्राई पोर्ट, शिक्षा और दूरसंचार, बिजली और पर्यटन उद्योगों में कार्यरत हैं।
भारत और नेपाल के बीच विभिन्न स्तर के सहयोग में चीन की सेंध लगाने की कोशिशें भी कम नहीं हैं। नेपाल और चीन में सीमा पार साइबर अपराधों का मुकाबला करने, सीमा प्रबंधन, संयुक्त रोकथाम और नियंत्रण, बंदरगाहों सहित अन्य क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने के अलावा कई दिशा में सहयोग बढ़ा है।
भारत और नेपाल के बीच करीब अठारह सौ किलोमीटर लंबी सीमा है जो बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और पश्चिम बंगाल राज्यों से भी लगती है। दोनों देशों के बीच सदियों पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं और वह अनूठी व्यवस्था मशहूर है जो अपने नागरिकों को बिना वीजा के दूसरे देश की यात्रा करने की अनुमति देती है। भारत में करीब अस्सी लाख नेपाली नागरिक रहते हैं और काम करते हैं, वहीं करीब छह लाख भारतीय नेपाल में रहते हैं।
प्रचंड ने इस वर्ष भारत की भी यात्रा की थी, जो बेहद ऐतिहासिक बताई गई थी। हालांकि प्रचंड के अप्रत्याशित राजनीतिक और कूटनीतिक कदमों से भारत आशंकित रहता है, लेकिन अब चीन में नेपाली प्रधानमंत्री प्रचंड ने नियंत्रण और संतुलन की नीति पर चलते हुए पड़ोसियों से समान संबंधों पर जो विश्वास जताया है, उससे भारत को निश्चित ही राहत मिली होगी। नेपाल में चीन की सेंध को रोकने की कोशिशों में भारत को फिलहाल सफलता मिलती दिखाई दे रही है।