खालिस्तानी आतंकवादी हरजीत सिंह की हत्या होने के कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोप के बाद दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ता ही जा रहा है। दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे के वरिष्ठ राजनयिकों को देश से निकालने के फरमान के बाद भारत ने कनाडा के लोगों के लिए बीजा सेवाएं निलंबित कर संकेत दिए हैं कि वह इस मामले को लेकर बेहद गंभीर है। ट्रूडो ने इस मसले पर बेहद राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया है। भारत लगातार खासकर खालिस्तान समर्थकों की भारत विरोधी गतिविधियों को लेकर कनाडा सरकार को अल्टीमेटम देते आया है,लेकिन ट्रूडो ने कार्रवाई करना तो दूर, उलटा भारत पर ही आरोप मढ़ दिया।
कनाडाई प्रधानमंत्री के इस रुख की एक बड़ी वजह राजनीतिक भी है। कनाडा की 338 सदस्यीय संसद में ट्रूडो की लिबरल पार्टी (158 सीटें) को बहुमत हासिल नहीं है। उनकी सरकार न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (25) के समर्थन से चल रही है, जिसका प्रमुख जगमीत सिंह खालिस्तान समर्थक माना जाता है। देश में ट्रूडो की लोकप्रियता की रेटिंग भी बहुत कम हैं, अगर आज चुनाव होते हैं तो वे किसी भी स्थिति में चुनाव जीत नहीं सकते। ऐसे में उन्हें अगले चुनाव के लिए भी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी की समर्थन की दरकार रहेगी। लिहाजा, ट्रूडो का यही रुख बना रहेगा और इसलिए कनाडा में सरकार बदलने तक दोनों देशों के रिश्तों में विशेष सुधार की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती। वहां अगले चुनाव 2025 में होने हैं।
कनाडा और भारत में एक-दूसरे के प्रति तल्खी इससे पहले भी रही है, लेकिन इसके बावजूद दोनों देश मुक्त व्यापार समझौता करने को उत्सुक थे। इससे दोनों को फायदा होता, लेकिन दुर्भाग्य से इसे अब दोनों ही पक्षों ने ताक पर रख दिया है। कनाडा में काफी तादाद मैं भारतीय रहते हैं। इनमें सिख भी काफी हैं और उनमें से अधिकांश का अतिवादी गतिविधियों या विचारों से कोई लेना-देना नहीं है।
बहुत सारे भारतीय वहां कार्यरत हैं और लाखों भारतीय छात्र वहां पढ़ते हैं। ऐसे में दोनों देशों के तनाव का अनावश्यक खामियाजा ट्रेडर्स, कामगारों और छात्रों को भुगतना पड़ सकता है। 2022 में कनाडा में 5.5 लाख विदेशी छात्र पढ़ने पहुंचे थे। इनमें 2.26 लाख छात्र भारत के थे। विदेशी छात्रों के कनाडा में अध्ययन करने का फायदा वहां की अर्थव्यवस्था को भी होता है।
विदेशी छात्र कुल मिलाकर हर साल 30 अरब डालर कनाडा की अर्थव्यवस्था में डालते हैं, जिसमें एक बड़ा हिस्सा भारत से जाता है। कनाडा पेंशन प्लान इन्वेस्टमेंट बोर्ड कनाडा का सबसे बडा फंड मैनेजर है। वहां के पेंशन फंडों का भारत के शेयर बाजार में काफी पैसा लगा हुआ है। बोर्ड के अनुसार भारत के 70 लिस्टेड स्टाक्स में पेंशन फंडों का कुल मिलाकर 21 अरब डॉलर (1.74 लाख करोड़ रुपए) लगे हुए हैं।
इस समस्या का समाधान पूरी तरह से ट्रूडो के पाले में है। हालांकि इससे पहले भी उन्होंने कोई परिपक्वता नहीं दिखाई और न ही उनसे अब किसी समझदारी की उम्मीद की जा सकती है। इस बात की संभावना हो सकती है कि पश्चिमी देशों में उनके शुभचिंतक जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक उन्हें अपने रुख को नरम करने की सलाह दें, क्योंकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों के भारत से भी अच्छे संबंध हैं और कनाडा से भी। वे ऐसी स्थिति नहीं चाहेंगे कि अंतत: उन्हें भारत और कनाड़ा में से किसी एक को चुनना पड़े।