हिमाचल प्रदेश के उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री का कहना है कि छोटे राज्य हिमाचल प्रदेश ने देश को बड़ा राजनीतिक संदेश दिया कि विपक्ष का पक्ष बनने का विकल्प खत्म नहीं हुआ है। हिमाचल की दी संजीवनी के बाद कांग्रेस कर्नाटक में जीती और चुनाव के लिए तैयार तीन राज्यों में बेहतर स्थिति में है। उन्होंने दोहरे इंजन वाली सरकार की धारणा पर सवाल उठाते हुए कहा कि केंद्र व राज्य सरकारों को संघीय ढांचे की अवधारणा के साथ काम करना चाहिए चाहे जिसकी भी सरकार हो। ऐसा नहीं होने पर सबसे बड़ा नुकसान राज्य की जनता को होता है। हिमाचल प्रदेश में आई आपदा के बाद वहां के हालात पर दिल्ली में मुकेश अग्निहोत्री के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।
मुकेश भारद्वाज-हिमाचल प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव ने कांग्रेस को राजनीतिक संजीवनी दी। जब कांग्रेस को हिंदुस्तान की राजनीति से खारिज किया जारहा था तब हिमाचल प्रदेश ने उसे फिर से खड़ा होने का हौसला दिया। महज चार संसदीय सीट वाले छोटे राज्य ने जो इतना बड़ा राजनीतिक संदेश दिया उसके पीछे आप क्या वजह मानते हैं?
मुकेश अग्निहोत्री-सत्ता से हटने के बाद जब कांग्रेस विपक्ष में चली गई तब 2017 के बाद मुझे विधायक दल का नेता बनाया गया था। उसी समय ठान लिया था कि 2022 में जब भी चुनाव होगा हम सत्तासीन होकर रहेंगे। इस दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ हमने प्रदेश में युद्ध छेड़ दिया। उस समय तो माहौल ऐसा बनाया गया था, जैसे भाजपा के खिलाफ संघर्ष ही नहीं किया जा सकता है। कमान मिलने के पहले दिन से हमने विधानसभा के भीतर और बाहर विपक्ष के रूप में काम करना शुरू कर दिया था। भाजपा के साथ पूरे पांच साल सीधा टकराव रहा। हमने हर मुद्दे पर काम किया और जनता के दिमाग में यह बात बैठ गई कि सूबे में भाजपा की सरकार बदलनी है। अरसे बाद हिमाचल पहला राज्य था जिसने भाजपा को शिकस्त दी। भाजपा ने एलान कर दिया था कि मुकेश अग्निहोत्री को विधानसभा नहीं पहुंचने देंगे। उनके शीर्ष नेताओं के दौरे हुए, बड़े-बड़े एलान करवाए गए। लेकिन हमने अपनी सीट पहले से अधिक अंतर से जीती। चालीस विधायक जीत कर आए। संघर्ष के जज्बे ने ही हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस को नया जीवन दिया।
मुकेश भारद्वाज-हिमाचल प्रदेश में जीत को कांग्रेस का भाग्य भी बताया गया क्योंकि सूबे में पांच साल में सरकार बदलने की प्रथा रही है। इस बिंदु को आप किस तरह देखते हैं?
मुकेश अग्निहोत्री-पिछले कार्यकाल की बात करें तो उस समय हमारे पास वीरभद्र सिंह के रूप में बड़ा नेतृत्व था और सुक्खू जी प्रदेश अध्यक्ष थे। सत्ता से बाहर होने के बाद मुझे चुनावी कमान सौंपने के पहले राहुल गांधी जी का फोन आया था। उन्होंने मुझसे कहा कि हम आपको कमान सौंप रहे हैं। आपसे एक ही उम्मीद की जाती है कि आप लड़ेंगे, संघर्ष करेंगे और पार्टी की सत्ता में वापसी कराएंगे।राहुल जी की इस बात को ही अपना दिशानिर्देशक और लक्ष्य बना लिया। उस दिन के बाद पांच साल तक मैंने सातों दिन चौबीस घंटे तक काम किया। प्रदेश के कोने-कोने में हमारा भाजपा के साथ संघर्ष दिख रहा था। हर जगह हमने भाजपा की घेरेबंदी की। भाजपा ने विधानसभा के भीतर भी मेरे ऊपर मामले दर्ज किए।
मुझे एक हफ्ते के लिए विधानसभा से बाहर रखा। मेरे साथ छह विधायकों को भी विधानसभा से बाहर रखा। देशद्रोह के मामले दर्ज कर दिए। लेकिन हमने संकल्प नहीं छोड़ा। आप यह नहीं कह सकते कि यह किसी बारी वाली जीत है। यह बहुत बड़े और कड़े संघर्ष की जीत है। वीरभद्र सिंह जी के निधन के बाद मंडी संसदीय सीट से उनकी पत्नी चुनाव लड़ीं। वो सीट हमने जीती। उसमें चार विधानसभा सीटों के चुनाव थे जो सारे हमने जीते। उसी से भाजपा के लिए खतरे की घंटी बज गई थी। हमें आत्मविश्वास था कि भाजपा को हिमाचल प्रदेश की सत्ता से बाहर कर देंगे। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने निर्णायक कोशिशें की और तिजोरियों के सारे मुंह खोल दिए। पूरी बिसात बिछाई गई कि हिमाचल का चुनाव कैसे जीतना है। लेकिन इतने भारी-भरकम चक्रव्यूह को हमने भेद दिया और हम सरकार बना पाए। ये बारी की बात नहीं थी।
मुकेश भारद्वाज-जयराम ठाकुर की सरकार दोहरे इंजन के दावे के साथ थी। प्रदेश के एक नेता भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तो दूसरे बड़े नेता केंद्रीय मंत्री। केंद्रीय चेहरों के द्वारा इतनी तवज्जो देने के बाद भी क्या कारण रहे कि जयराम ठाकुर की सरकार चुनाव हार गई।
मुकेश अग्निहोत्री-इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने हिमाचल पर पूरा जोर लगाया था। प्रधानमंत्री ने खुद भी कई कार्यक्रम किए। जगत प्रकाश नड्डा जी हिमाचल प्रदेश से आते हैं जो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। अनुराग ठाकुर केंद्र में मंत्री और जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री थे। भाजपा इस चार गुणा दबाव के साथ चुनाव लड़ रही थी। इस टीम को पराजित करना बड़ी चुनौती थी। इन्होंने चक्रव्यूह तो पूरा रचा, लेकिन हम उसे भेद गए। जयराम ठाकुर की सरकार खुद को दोहरे इंजन की बताती थी। उनका दावा था कि केंद्र और हिमाचल दोनों जगह हमारी सरकार है। लेकिन उसके नाते जो निर्णायक काम हिमाचल के होने चाहिए थे, जो मदद सूबे को मिलनी चाहिए थी वह सब नहीं हो रहे थे। साथ में सबसे बड़ा पाप हुआ कि भाजपा के शासनकाल में नौकरियां बेची गईं। हमने आकर चयन आयोग को भंग किया। अभी 13 एफआइआर दर्ज हैं, 65 लोग जेल में हैं।
इतनी नौकरियों की भर्ती हुई, पुलिस की भर्ती हुई तो किसी में कोई पेपर किसी अभ्यर्थी को पांच लाख में बिका तो किसी को तीन लाख में बिका। अब तो ये साबित हो गया कि इसकी जिम्मेदार राजनीतिक पार्टी है। युवाओं में संदेश गया कि सूबे में योग्यता की कोई कद्र नहीं है। एक लूट मची है, चोरबाजारी चल रही है। पैसे के दम पर नौकरियां मिल रही हैं। दूसरी अहम बात यह थी कि कुछ लोगों ने सारा बजट अपने चुनावी क्षेत्र में लगा दिया। जयराम जी मुख्यमंत्री थे तो वे सारे बजट को अपने क्षेत्र में लगाना चाहते थे। महेंद्र सिंह जो दूसरे नंबर पर थे सब कुछ अपने क्षेत्र में चाहते थे। दो चुनावी क्षेत्रों में सारा बजट लुटा दिया गया। सारी नौकरियां वहां चली गईं। हर तरह के जो बंदोबस्त हो रहे थे वे खुद को बचाने के लिए हो रहे थे। इसलिए बहुत से इलाकों में विकास पहुंच ही नहीं पाया। सरकारी खर्चे पर चुनाव जीतने की बहुत बड़ी बिसात बिछा दी गई।
भारतीय जनता पार्टी को आदत पड़ गई है सरकारी कोष से चुनाव लड़ने और जीतने की। पथ परिवहन निगम चुनावों के नाम हो गया। इनकी रैलियों पर लगभग 36 करोड़ रुपए खर्च हुए। अभी भी साढ़े आठ करोड़ रुपए की देनदारी बाकी है। अमृत महोत्सव का कार्यक्रम चलाया, लेकिन केंद्र से कोई पैसा नहीं आया। सात करोड़ रुपया राज्य के कोष से खर्च कर दिया गया। एक जनमंच चलाया, जिसमें चपातियां खाने के लिए सात करोड़ रुपए खर्च कर दिए। निवेशकों के एक सम्मेलन में टेंट लगाने के लिए 26 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। ऐसे सारे मुद्दे नजर में आते गए कि किस ढंग से सरकार के संसाधनों को इन्होंने नष्ट किया है। आप अंदाजा लगाएं कि हिमाचल एक छोटा सा राज्य है। और हिमाचल प्रदेश पर 92 हजार करोड़ की देनदारियां हैं। भाजपा 75 हजार करोड़ रुपए का कर्ज छोड़ कर गई है। फिर काहे कि डबल इंजन की सरकार, यह संदेश मिलते ही जनता ने सोच-समझ कर इन्हें सत्ता से बाहर कर दिया।
मुकेश भारद्वाज-अब तकनीकी रूप से एकल इंजन वाली सरकार होने के बाद आपके क्या अनुभव हैं? खास कर जब हिमाचल प्रदेश भयानक आपदा से गुजरा है और वह बहुत से मामलों में केंद्र पर निर्भर है।
मुकेश अग्निहोत्री-आप देखें कि अब हिमाचल प्रदेश के साथ कैसा सलूक हो रहा है। हिमाचल प्रदेश के कर्ज लेने की सीमा घटा दी गई है। हमने वादा किया था ओपीएस देंगे। हमने विधानसभा के अंदर कर्मचारियों को पेंशन देने की घोषणा की थी। उस घोषणा को हमने अमलीजामा पहनाया। ओपीएस का हमारा नौ हजार करोड़ दिल्ली के पास जमा है। लेकिन, ये पैसा हमें देने से इनकार कर दिया गया। कर्ज की हमारी सीमा घटा दी।विदेशी फंडिंग को घटा कर तीन हजार करोड़ पर पहुंचा दिया। ‘रेवेन्यू डेफिशिट ग्रांट’ कभी हमें ग्यारह हजार करोड़ मिला करती थी, अब हम तीन हजार करोड़ पर पहुंच गए हैं। जून महीने से जीएसटी भी बंद हो गई।
हिमाचल प्रदेश का गठन लोगों की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए हुआ था। उस समय भी पता था कि राज्य के पास आय के ज्यादा साधन नहीं हैं। लेकिन अब तो हर तरफ से पाबंदी लग रही है। यहां इतनी बड़ी त्रासदी हुई। बारह हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। लेकिन, हमें कोई मदद नहीं मिली। नियमों के मुताबिक भी मुनासिब मदद नहीं मिली। जबकि सूबे में 441 लोगों की जान चली गई। इतना बड़ा नुकसान हो गया। हिमाचल प्रदेश लगातार केंद्र की तरफ देख रहा है।
मुकेश भारद्वाज-हिमाचल प्रदेश की जनता ने दोहरे इंजन से एकल इंजन में आना पसंद किया। आप इसकी समस्या भी बता रहे हैं। केंद्र व राज्य के इस रिश्ते की जरा विस्तार से व्याख्या करेंगे।
मुकेश अग्निहोत्री-देखिए, हम संघीय ढांचे में रह रहे हैं। कायदा यही है कि कोई राज्य कष्ट में है तो उसकी मदद की जाए। उत्तराखंड में आपदा आई तो खुल कर मदद की गई। लेकिन हिमाचल प्रदेश में दूसरे दल की सरकार है तो सोचा भी दूसरे तरीके से जा रहा है। सिर्फ मेरे अपने जलशक्ति विभाग को 21 सौ करोड़ का नुकसान हुआ है। हमारी पेयजल योजनाएं नदियों के किनारे पर बनी हैं, पाइपें, पंप हाऊस से लेकर सीवेज तक। इतना भारी नुकसान हुआ। अभी तक केंद्र ने हमें फूटी कौड़ी नहीं दी है। मैं तो लगातार केंद्र के पास आ रहा हूं। दोहरे इंजन का अभिप्राय था कि अगर केंद्र व हिमाचल दोनों जगह भाजपा की सरकार थी तो भाखड़ा ब्यास प्रबंधन का जो हिमाचल का पैसा है वही दिलवा देती।
सुप्रीम कोर्ट ने हमारे हक में फैसला दिया था। हमारा लगभग साढ़े चार हजार करोड़ का बकाया है। वो तो हिमाचल को दिलवा नहीं सके ये लोग। वहीं पंद्रहवें वित्त आयोग से हमारा सबसे बड़ा नुकसान हुआ क्योंकि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। चौदहवें वित्त आयोग ने हमें 232 फीसद का इजाफा किया। उस समय कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन पंद्रहवें वित्त आयोग ने हमें सिर्फ आठ फीसद का इजाफा दिया। वहीं से हिमाचल प्रदेश की बुनियाद हिल गई। भाजपा सरकार पर सबसे बड़ा आरोप है कि इसने पंद्रहवें वित्त आयोग के समक्ष ढंग से पैरवी नहीं की। पंद्रहवें वित्त आयोग के अनुमोदन का भी पैसा हिमाचल प्रदेश को नहीं दिया गया।
अभी तक हम इंतजार कर रहे हैं। जब आप प्रदेश में थे तो कोई स्पेशल पैकेज नहीं दिया। आप हिमाचल और दिल्ली दोनों जगह थे तो उसका 75 हजार करोड़ का कर्ज माफ कर देते। या आप उसे कोई औद्योगिक या अन्य पैकेज देते। ऐसा हुआ नहीं। अब आप जीएसटी की ‘कंपनसेशन’ बंद कर रहे हैं। हमारी आय के तीन-चार ही तो स्रोत थे। जीएसटी, ‘रेवेन्यू डेफिशिट ग्रांट’ से आय या फिर पेट्रोल से वैट या शराब से। शराब का भी मुद्दा प्रदेश में हावी रहा कि अब आकर हमने ठेके नीलाम किए। अपने पहले साल में हमें ठेकों से 18 सौ करोड़ रुपए की आय होगी। इनके समय में 12 सौ करोड़ थी जो इनका आखिरी साल गया। आखिर पहले ही साल में छह सौ करोड़ रुपए की आय में बढ़ोतरी कैसे हो गई? इन्होंने ठेके नीलाम ही नहीं किए।
मुकेश भारद्वाज-आप कह रहे हैं कि आपदा के बाद केंद्र ने हिमाचल प्रदेश को फूटी कौड़ी भी नहीं दी। क्या फूटी कौड़ी को शाब्दिक अर्थ में लिया जाए?
मुकेश अग्निहोत्री-जो भाजपा दिखा रही है वह तो हमें नियमों के तहत मिलना ही है। जो आपदा की वजह से मिलना चाहिए था वह हमें नहीं दिया गया था। दिसंबर की किस्त एडवांस दे दी, पिछले साल का किराया बकाया पड़ा था वो दे दिया। लेकिन जिस चीज की हम उम्मीद करते हैं, हम केंद्र के पास बार-बार आ रहे हैं। इतनी बड़ी आपदा आई है, 12 हजार करोड़ का नुकसान हो गया। आपदा के समय हिमाचल में 75 हजार पर्यटक थे जिन्हें हिमाचल से सुरक्षित निकालना बड़ी चुनौती थी। यथासंभव साधन से काम चलाया। मैं मानता हूं कि केंद्र को हिमाचल प्रदेश को राष्ट्रीय आपदा क्षेत्र घोषित करना चाहिए था। ‘स्पेशल पैकेज’ की घोषणा होनी चाहिए थी। ये कहते हैं कि प्रियंका जी बहुत देर से आईं। उन्होंने तो 48 घंटे लगाए। लेकिन, दिल्ली से वे बड़े नेता क्यों नहीं आए जो कहते थे हिमाचल प्रदेश हमारा दूसरा बड़ा घर है। हिमाचल प्रदेश के व्यंजनों की चर्चा करते हैं। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में कदम तक नहीं रखा। शायद नाराज होंगे कि हिमाचल प्रदेश से सत्ता चली गई।
मुकेश भारद्वाज-हिमाचल के कई इलाकों पर बिल्डरों का कब्जा हो चुका है। मनाली, शिमला की बदहाली साफ दिख रही है। क्या पहाड़ को इस व्यापार से बचाने की कोई योजना है आपके पास?
मुकेश अग्निहोत्री-दो तरह की बातें हैं। पहाड़ों में जो फोरलेन आया है उसका मकसद सड़क चौड़ी करना है। लेकिन, जिस समय हिमाचल बना था तो शायद उस समय के हिसाब से जो सड़कों का माडल था वो ज्यादा सही रहा होगा। पहले आए दिन शिमला से कालका-चंडीगढ़ सड़क बंद नहीं होती थी। इस दफा लंबे अरसे तक बंद रही थी। फोरलेन के कारण पहाड़ों की इतनी कटाई हुई कि सारे पहाड़ दरक कर नीचे आ गए। ये पहाड़ शैशव काल में हैं, नए हैं। इनका कटान घातक है।
मुकेश भारद्वाज-आपकी सरकार ने इन सब परियोजनाओं का विरोध क्यों नहीं किया?
मुकेश अग्निहोत्री- ये आज की बात नहीं हैं। जब मैं औद्योगिक मंत्री था तो इन्हें नोटिस भी दिया था। कहा था कि ये जो आप कर रहे हैं पहाड़ों के लिए घातक हो जाएगा। दूसरा नदियों के किनारे से लेकर अंदर तक लोग बस गए। पर्यटकों की जो नगरियां है चाहे वो शिमला, डलहौजी, मनाली हो चप्पे-चप्पे पर लोग बस गए हैं। अब ‘ड्रेनेज’ के लिए कोई जगह नहीं रह गई है। नालियां बनी नहीं हैं। इसके लिए कोई एक सरकार कसूरवार नहीं है। लंबे समय से यह स्थिति पैदा हो गई।
मुकेश भारद्वाज-भविष्य के लिए कोई योजना है?
मुकेश अग्निहोत्री-अब तो योजना बनानी ही पड़ेगी। अब तो पहाड़ों के बारे में सोचना पड़ेगा। फोरलेन के बारे में सोचना पड़ेगा। नदियों की ‘चैनलाइजेशन’ करनी पड़ेगी। शिमला में तो अदालतों का भी दखल रहा है। एनजीटी का भी दखल रहा है। पहाड़ों की वजह से बिल्डरों ने हिमाचल प्रदेश में रास्ता बना लिया। वैसे तो हिमाचल निर्माता डाक्टर परमार ने ‘सेक्शन 118’ केंद्र से शुरू करवाई थी कि हिमाचल प्रदेश में बिना अनुमति किसी को भी संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं है।यह नियम हिमाचल प्रदेश में आज भी कायम है। सरकार को अनुमति का अधिकार है तो अनुमति मिलती चली गई। अब इन सब पर सख्ती और सावधानी से काम करना होगा। हमारी सरकार इसे लेकर गंभीर है। हिमाचल अगर जंगल नहीं काटता है, नदियों पर काम कर रहा है तो इसका फायदा पूरे देश को मिलता है। इसलिए उन सभी हितधारकों का फर्ज बनता है कि हिमाचल प्रदेश का वाजिब हक उसे दिया जाए ताकि वह अपने साथ पूरे देश के पर्यावरण का ख्याल रख सके। हम हर उस जगह पर मुखर हो रहे हैं जहां से हिमाचल के हक को दबाया जा रहा था।
मुकेश भारद्वाज-भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि बदली है, वहीं हिमाचल प्रदेश में प्रियंका गांधी सक्रिय रही थीं। वे अब राज्य की निवासी भी हैं। यहांं उनकी भूमिका को कैसे देखते हैं?
मुकेश अग्निहोत्री-हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता स्थापित करने में प्रियंका गांधी की भूमिका बहुत अहम रही है। उन्होंने यहां बहुत समय दिया, बहुत रैलियां की और हिमाचल के मुद्दों को पूरी शिद्दत से उठाया। यहां पर उनका घर भी है। अब वे हिमाचल प्रदेश में स्थापित हैं। लोग उनको अपना मानने लगे हैं। वे हिमाचल प्रदेश की स्थायी निवासी हैं, और यहां लोकप्रिय हो चुकी हैं। वैसे तो गांधी परिवार की बदौलत ही हिमाचल प्रदेश बना। अगर इंदिरा जी न होतीं तो हिमाचल नहीं बनता। इंदिरा जी 1971 में आई और हमें पूर्ण राज्य दिया। तब भाजपा महा-पंजाब की समर्थक थी।
मुकेश भारद्वाज-आगे की लड़ाई लोकसभा सीटों की होगी। भाजपा के केंद्रीय कद्दावर चेहरों के बरक्स चार सीटों पर दावेदारी की कितनी तैयारी है?
मुकेश अग्निहोत्री-राज्य जीतना एक बड़ी चुनौती थी। यह हमने उस दौर में किया जब राज्य नहीं जीते जा रहे थे। हिमाचल ने बुनियाद रख दी। उसके बाद कर्नाटक जीत गए। मध्यप्रदेश, राजस्थान छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अच्छी स्थिति में है। अन्य राज्यों में भी अब कांग्रेस की धमक है।
प्रस्तुति : मृणाल वल्लरी