न्यूयार्क में थी मैं जब कनाडा के प्रधानमंत्री ने अपना धमाकेदार इल्जाम लगाया भारत सरकार पर। न्यूयार्क के अखबारों में इसका जिक्र कई दिनों तक सुर्खियों में रहा और न्यूयार्क टाइम्स में लंबा लेख छपा जिसमें हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को गहराई में पेश किया गया गवाहों की नजर से। गवाहों ने बताया कि कैसे वो घर जाने के लिए गुरुद्वारे से बाहर आया और अपनी गाड़ी में बैठा। गाड़ी चलाने ही वाला था कि एक सफेद गाड़ी ने उसका रास्ता रोका और कैसे दो नकाबपोश आदमियों ने उसपर अंधाधुंध गोलियां चलाईं। इस लेख में कोशिश थी साबित करने की कि हत्या के पीछे भारत सरकार का हाथ था।
पहले भारत सरकार के प्रवक्ताओं ने इस आरोप को बेबुनियाद और झूठा बताया लेकिन कुछ दिन बाद अपने प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के देशों के बीच जो रिश्ते हैं उनमें दोहरे मापदंड नहीं होने चाहिए। इसके बाद भारत के विदेश मंत्री न्यूयार्क पहुंचे और उन्होंने भी स्पष्ट शब्दों में संयुक्त राष्ट्र के सालाना सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि दोहरे मापदंड नहीं होने चाहिए। मैं जिस होटल में ठहरी थी वहां संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भाग लेने कई भारतीय भी ठहरे थे। जिनमें विदेश नीति के विशेषज्ञ भी थे।
उनसे बातों बातों में मालूम हुआ कि संभव है कि निज्जर को भारत की गुप्तचर संस्थाओं ने मरवाया हो लेकिन सबूत नहीं है इसका। उधर, अमेरिकी अखबारों ने सबूत मांगना जरूरी नहीं समझा। इसलिए कि फाइव आइज (पांच आंखें) नाम की एक जासूसी संस्था है जिसमें अमेरिका के नेतृत्व में पांच महत्त्वपूर्ण, ताकतवर पश्चिमी देश हैं जो गुप्तचर सूचनाएं मिल कर इकट्ठा करते हैं और अक्सर ये सूचनाएं सही होती हैं। फाइव आइज के मुताबिक कोई शक नहीं है कि निज्जर को भारत सरकार ने मरवाया है।
मेरी नजर में ये संभव है। लोकसभा चुनाव पास आ रहा है और मोदी जानते हैं कि खालिस्तानियों के साथ सख्ती से पेश आते हैं तो मतदाता उनको शाबाशी देंगे। बिलकुल वैसे जैसे पिछले लोकसभा चुनाव में सर्जिकल स्ट्राइक से फायदा हुआ था उनको। उस चुनाव में जहां भी गई थी, मुझे लोग मिले जिन्होंने स्पष्ट किया कि वो मोदी को वोट इस लिए देंगे क्योंकि उन्होंने साबित किया है कि देश के दुश्मनों को वो कभी बख्शेंगे नहीं।
समस्या लेकिन पंजाब में पैदा हो सकती है। वहां खालिस्तान के लिए जरा भी समर्थन नहीं है फिलहाल। इसका सबूत है कि अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी के बाद पंजाब के अंदर बिल्कुल कोई विरोध नहीं दिखा है। महीनों से किसी जेल में इसको रखा गया है और लगता है जैसे इसका नाम तक लोग भूल गए हैं। कनाडा के खालिस्तानियों की हरकतें इतनी बेमतलब हैं कि पंजाब में उनका कोई असर नहीं दिख रहा है। तो इतना हंगामा क्यों हो रहा है खालिस्तान को लेकर? हमारी गुप्तचर संस्थाएं क्यों कनाडा की भूमि पर कनाडा के एक नागरिक की हत्या करके अंतर-राष्ट्रीय बदनामी मोल रही हैं?
सच पूछिए तो मुझे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा करके नरेंद्र मोदी हासिल क्या करना चाहते हैं। अगर इसके पीछे सिर्फ राजनीति है और सिखों को निशाना बना कर अगला चुनाव जीतना चाहते हैं तो बेहिसाब नुकसान होने वाला है पंजाब में। यहां याद करना जरूरी है कि जब जरनैल सिंह भिंडरांवाले को स्वर्ण मंदिर के अंदर से आतंकवाद फैलाने दिया था इंदिरा गांधी ने तो पंजाब में इतना नुकसान हुआ था कि कोई बीस साल तक पंजाब में आतंकवादियों का बोलबाला रहा था। भिंडरांवाले ने बहुत कोशिश की थी खालिस्तान के लिए समर्थन जुटाने की लेकिन नाकाम रहा। सिखों में अगर अशांति फैली थी तो सिर्फ स्वर्ण मंदिर के अंदर सेना भेजी जाने के बाद।
सेना जब भेजी गई तो भिंडरांवाले और उसके खास साथी अकाल तख्त के अंदर शरण लिए हुए थे सो सेना इस इमारत को बर्बाद करने के लिए मजबूर हुई थी। जब अकाल तख्त सेना की बमबारी के कारण तबाह हुआ तब सिखों में गुस्सा फैला था। ये इमारत प्रतीक है न्याय की। इसको बनाया गया था मुगल बादशाह के तख्त से ऊंचा ताकि साबित हो कि खालसा कभी भी अन्याय बर्दाश्त नहीं करेगा। जब भी सिखों को लगता है कि उनके साथ अन्याय किया जा रहा है हमेशा लड़ने को तैयार रहते हैं गुरु गोविंद सिंह के ये शब्द याद रख कर: ‘सूरा सो पहचानिए जो लड़े दिन के हेत, पुर्जा पुर्जा कट मरे कभी ना छाड़े खेत’।
कहना ये चाहती हूं कि खालिस्तान का हौवा खड़ा करके अगर मोदी अगला चुनाव जीतने की कोशिश कर रहे हैं तो उनको याद रखना चाहिए कि ऐसा पहले भी किया था एक प्रधानमंत्री ने और परिणाम बहुत खराब हुआ था। खालिस्तान के लिए अगर पंजाब के देहातों में समर्थन होता तो हमको चिंता होनी चाहिए। कनाडा में बैठे खालिस्तानी आतंकवादियों की हमको कोई चिंता नहीं होनी चाहिए। अभी तक ना उनका असर दिखा है पंजाब में और ना ही कोई समर्थन। तो कनाडा में वहां के किसी नागरिक को मार कर भारत का कोई लाभ नहीं हुआ है। उल्टा अमेरिकी अखबारों में कहा गया कि भारत ने ऐसा अगर किया है तो उसकी गिनती रूस, चीन और उत्तर कोरिया जैसे देशों में होने लगेगी।
माना कि भारतीय पत्रकारों ने दोष सारा जस्टिन ट्रूडो पर डाला है लेकिन न्यूयार्क से अगर इस हत्या को देखा जाए तो भारत को बदनामी मिली है लाभ नहीं। ऐसा होता रहेगा अगर तो हमारे रिश्ते उन पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों के साथ बिगड़ जाएंगे जिनके साथ हम अच्छे रिश्ते बनाना चाहते हैं। खालिस्तान के लिए न समर्थन कभी था पंजाब में, न कभी होगा। इसको चुनावी मुद्दा बनाना गलत है।