चीन और रूस की नजदीकी इस समय वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी जुगलबंदी है। खुद अमेरिका को भी दोनों की नजदीकी रास नहीं आ रही है। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था जबकि रूस और चीन एक दूसरे के नजदीक रहे हो। शीत युद्ध के दौरान रूस और चीन एक दूसरे से गुत्थमगुत्था दिखे थे।
दोनों के बीच सीमाबंदी और विचारधारा को लेकर विवाद था। लेकिन जैसे ही शीत युद्ध खत्म हुआ वैसे ही समीकरण बदलने लग गए। 1989 में हुए Tiananmen massacre के बाद से चीन पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए गए। ऐसे में चीन के पास रूस के तौर पर एक ऐसा दोस्त था जो उसे सेना से जुड़ी तकनीक मुहैया करा सकता था। ये हालात ही चीन और रूस को करीब लेकर आए।
कारनेगी रसिया यूरेशिया सेंटर इन बर्लिन के निदेशक अलेंक्जेंडर गाबेव का कहना है कि दोनों के बीच दोस्ताना ताल्लुकात की ये एक शुरुआत थी। उसके बाद के दौर में चीन को रूस की तरफ से जोरदार समर्थन मिला। चीनी सेना के रिटायर्ड सीनियर कर्नल झो बू का कहना है कि रूस की वजह से ही चीन की सेना ताकतवर बनती गई। जब पुतिन रूस के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने 2001 में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति जियांग जेमिन के साथ करीबी ताल्लुकात बनाए। उसके बाद ही चीन वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन से जुड़ा। उसके बाद वो आर्थिक महाशक्ति के तौर पर सामने आया।
रूस की वजह से ही चीन को ये तरक्की हासिल हो सकी। गाबेव का कहना है कि रूस यूक्रेन वार के बाद दोनों की दोस्ती नए आयाम तक पहुंची है। पुतिन तो पता है कि यूक्रेन को जीते बगैर वो बड़े नहीं बन सकते। उधर जिनपिंग को भी पता है कि उनके सामने भी कुछ इसी तरह के मुद्दे हैं। हांगकांग और ताइवान में उसे भी यूक्रेन जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका दोनों जगहों पर चीन का विरोध करता है। उनका कहना है कि मौजूदा हालात चीन और रूस को और करीब लेकर आए।