विधि आयोग ने चरणबद्ध तरीके से ई-एफआइआर का पंजीकरण शुरू करने की सिफारिश की है। आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि इसकी शुरुआत तीन साल तक की जेल की सजा वाले अपराधों से की जा सकती है। इस सप्ताह की शुरुआत में सरकार को सौंपी गई और शुक्रवार को सार्वजनिक की गई एक रिपोर्ट में, विधि आयोग ने ई-एफआइआर के पंजीकरण की सुविधा के लिए एक केंद्रीकृत राष्ट्रीय पोर्टल बनाने का भी प्रस्ताव दिया।
इसमें कहा गया है कि ई-एफआइआर से प्राथमिकी के पंजीकरण में देरी की लंबे समय से चली आ रही समस्या से निपटा जा सकेगा और नागरिक वास्तविक समय में अपराध की सूचना दे सकेंगे। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने पत्र में विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी ने कहा कि प्रौद्योगिकी के विकास के कारण संचार के साधनों में बहुत प्रगति हुई है। ऐसी स्थिति में, प्राथमिकी दर्ज करने की पुरानी प्रणाली पर ही टिके रहना आपराधिक सुधारों के लिए अच्छा संकेत नहीं है। भाषा
सुप्रीम कोर्ट में ही दाखिल कर दिया सुप्रीम कोर्ट का मनगढ़ंत आदेश, पुलिस को सौंपी जांच
जनसत्ता: सुप्रीम कोर्ट ने एक आंतरिक जांच रिपोर्ट पर गौर करने के बाद अपने रजिस्ट्रार को पुलिस में शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया है। जांच रिपोर्ट के मुताबिक, एक विचाराधीन याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट का ही जो आदेश संलग्न किया गया था वह फर्जी था। न्यायमूर्ति एएस ओका व न्यायमूर्ति पंकज मित्थल की पीठ ने रजिस्ट्रार की रिपोर्ट का अवलोकन किया और कहा कि यह स्पष्ट था कि अदालत के आदेश की प्रति बताया जाने वाला दस्तावेज ‘मनगढ़ंत’ था।
पीठ ने संबंधित पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को दो महीने के भीतर जांच के बारे में अदालत को रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। पीठ ने कहा कि इस मामले में वकील प्रीति मिश्रा को उनकी भूमिका की जांच करने के लिए नोटिस जारी किया गया था। लेकिन उन्होंने अब इस अदालत के सामने पेश नहीं होने का फैसला किया है। अब वकील की भूमिका की जांच करना पुलिस का काम है। पीठ ने रजिस्ट्रार को आदेश की एक प्रति पुलिस को सौंपने का भी निर्देश दिया।