लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति काफी रोचक नजर आ रही है। जहां मायावती की पार्टी बसपा पर समाजवादी पार्टी ने भाजपा के साथ मिले होने के आरोप लगाए हैं। कहा गया है कि बसपा इंडिया गठबंधन पर सवाल उठा रही है लेकिन सत्ता में बैठी भाजपा सरकार को लेकर खामोश है। समाजवादी पार्टी ने हमेशा की तरह बसपा को एक बार फिर भाजपा की बी-टीम कहना शुरू कर दिया है।
दूसरी तरफ विपक्ष को मायावती के साथ हाथ मिलाने में कोई बड़ी आपत्ति नहीं है और माना जाता है कि बसपा प्रमुख से इंडिया गठबंधन में शामिल होने के लिए संपर्क भी किया गया है लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया है।
ऐसा माना जाता रहा है कि इंडिया गठबंधन के ज़्यादातर नेता चाहते हैं कि मायावती को भी गठबंधन का हिस्सा बनाया जाए ताकि विपक्षी एकता और ज़्यादा मजबूत हो सके। इस कयास का अंदाजा जद (यू) के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता के सी त्यागी के बयान से लगाया जा सकता है जहां उन्होंने कहा था,”जद (यू) और हमारे नेता नीतीश कुमार वर्तमान सरकार के खिलाफ पूर्ण विपक्षी एकता चाहते हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी समय-समय पर यही विचार व्यक्त करते रहे हैं। अब यह फैसला करना मायावती पर है कि क्या वह इंडिया गठबंधन और भाजपा से एक साथ लड़ना चाहती हैं? क्योंकि कोई दोनों से नहीं लड़ सकता, अगर वह इंडिया गठबंधन चुनती है तो हम उनका स्वागत करेंगे। लेकिन अगर वह कांग्रेस और सपा पर हमला करती रहेंगी तो वह इंडिया ब्लॉक का हिस्सा नहीं बन सकतीं।”
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक एक बसपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर ये माना कि पार्टी के दूर रहने से इंडिया गठबंधन को नुकसान हो सकता है। वह कहते हैं, “बसपा अपने दम पर जीतने की स्थिति में नहीं है लेकिन वह अन्य पार्टियों को नुकसान पहुंचा सकती है, पार्टी के पास हर विधानसभा सीट पर कम से कम 15,000 वोट हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “2022 के विधानसभा चुनावों में जब बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा था तो उसके मुस्लिम उम्मीदवारों ने कई सीटों पर सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को नुकसान पहुंचाया था।”
ऐसा माना जाता है कि बसपा लंबे वक्त से केंद्र में भाजपा सरकार का मौन समर्थन करती रही है। इसका ताजा उदाहरण महिला आरक्षण बिल को कहा जा रहा है, जहां मायावती ने मांग की कि महिलाओं के कोटे के भीतर एससी और एसटी की तरह ओबीसी के लिए भी कोटा हो लेकिन उन्होने कानून को समर्थन दिया।
इसके अलावा इसे इस उदाहरण से भी समझा जा सकता है कि जब G20 के निमंत्रण पर INDIA के बजाय भारत के राष्ट्रपति लिखे जाने को लेकर विवाद हुआ था तो मायावती ने विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा था कि वह खुद भाजपा को संविधान से छेड़छाड़ करने का मौका देते हैं।
मायावती ने 25 मई को जब 20 से अधिक विपक्षी दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने की घोषणा की तो तो इस कार्यक्रम का स्वागत करते हुए कहा कि समारोह का बहिष्कार करना अनुचित था और सरकार को इसका अनावरण करने का अधिकार है क्योंकि उन्होने इसे बनाया है।
इस दावे का एक और उदाहरण इससे लिया जा सकता है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जून को भोपाल में एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर जोर दिया और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसकी निंदा की, तो मायावती ने जवाब दिया कि उनकी पार्टी यूसीसी के खिलाफ नहीं है लेकिन जिस तरह से भाजपा इसे लागू करने की कोशिश कर रही है हम उसका समर्थन नहीं कर सकते।
कहा यह भी जाता है कि मायावती हर वक्त पीएम मोदी या यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर कोई सीधी टिप्पणी करने से बचती रही हैं। भाजपा नेता भी अपने राजनीतिक हमलों को मुख्य रूप से सपा और कांग्रेस पर केंद्रित करते हैं लेकिन बसपा के खिलाफ शायद ही कभी बोलते हैं।