दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव में इस बार एबीवीपी ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए तीन सीटें अपने नाम की। उन्हीं सीटों में एक सीट सचिन पद की भी थी जो इस बार जौनपुर की अपराजिता के नाम गई है। अपराजिता का सचिव चुनाव जीतना सिर्फ एक चुनावी जीत नहीं है, बल्कि ये इस बात की तस्दीक करती है कि छोटे शहरों से आकर भी सियासत में क्रांति की जा सकती है।
अपराजिता ने दयाल बाग कॉलेज से हिस्ट्री ऑनर्स की पढ़ाई की है, इस समय वे बौद्ध अध्ययन पर मास्ट डिग्री हासिल कर रही हैं। यूपी तक से बात करते हुए अपराजिता ने अपने शुरुआती जीवन और एबीवीपी तक के सफर के बारे में काफी विस्तार से बताया है। उन्होंने बताया है कि कैसे उन्होंने किसी को दिल्ली में ना जानते हुए भी एक बड़ा परिवार खड़ा कर दिया। कैसे उन्हें हजारों लोगों का समर्थन मिला, कैसे कई लोग उनके साथ खड़े हो गए।
असल में अपराजिता का शुरुआत से ही एबीवीपी की तरफ झुकाव रहा। इस संगठन की जो राष्ट्रवाद वाली राजनीति रही है, उसी ने अपराजिता को भी इस संगठन के साथ जोड़ दिया। अपराजिता बताती हैं कि उनकी जो चुनाव में जीत हुई थी, उसमें उनकी पार्टी का बहुत बड़ा हाथ है। वो भी मेहनत तो करती थीं, लेकिन उनके समर्थकों ने उनसे भी ज्यादा परिश्रम कर उन्हें 12 हजार से ज्यादा वोटों से बड़ी जीत दिलवाई।
इस बार वैसे अपराजिता ने लड़कियों को ध्यान में रखकर अपना चुनाव रखा। इसी वजह से उनकी तरफ से पहली बार लड़कियों के लिए एक अलग घोषणा पत्र भी जारी किया गया। इस बारे में अपराजिता का कहना रहा कि जो भी कोई छोटे शहरों से या दूर इलाकों से यहां दिल्ली आएंगे, उन्हें कभी ये ना लगे कि वे परिवार से दूर हैं, उनके साथ कोई नहीं है। उन्हें यहां पर ऐसा माहौल दिया जाएगा कि सभी एक परिवार की तरह रहेंगे।
वैसे जो अपराजिता अब दूसरों का इतना ध्यान रख रही हैं, एक समय जब जौनपुर से वे दिल्ली आई थीं, उन्हें भी ये डर सता रहा था। डर इस बात का कि अगर वो बीमार पड़ गईं तो दिल्ली में उनका कौन ख्याल रहेगा, डर इस बात का अगर उन्हें किसी की जरूरत पड़ी तो कौन मदद करेगा। लेकिन अपराजिता के मुताबिक एबीवीपी के साथ जुड़ते ही उनकी ये तमाम शंकाएं दूर हो गईं। अब उनका सारा फोकस सचिव बन सभी की सेवा करने पर है।