नृपेंद्र अभिषेक नृप
फिलहाल अधिक उत्पादन के लिए खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है। इससे कम जोत वाले सामान्य और छोटे किसानों को खेती में अत्यधिक लागत लगानी पड़ रही है। इससे जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है। इसके साथ ही खाद्य पदार्थ जहरीले हो रहे हैं। इसलिए इस प्रकार की सभी समस्याओं से निपटने के लिए पिछले कुछ वर्षों से सरकार जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है।
आज विभिन्न प्रकार की तकनीकों के साथ कृषि में उत्पादन बढ़ाने की नई विधियां भी आ चुकी हैं। इन्हीं विधियों में एक है जैविक खेती, जो प्रदूषित होते संसार के लिए वरदान साबित हो सकती है। ‘आर्गेनिक वर्ल्ड रिपोर्ट 021’ के अनुसार वर्ष 2019 में विश्व के 7.23 करोड़ हेक्टयर क्षेत्र में जैविक खेती की गई, जिसमें एशिया का 51 लाख हेक्टयर क्षेत्र भी शामिल है। भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में जैविक खेती में वृद्धि हुई है।
भारत में 2019 में जैविक खेती का रकबा बढ़कर 22 लाख 99 हजार 222 हेक्टयर हो गया। हालांकि अब भी यह परंपरागत कृषि क्षेत्र की तुलना में मात्र 1.3 फीसद है। भारत में अभी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओड़ीशा समेत दर्जन भर राज्यों में जैविक खेती हो रही है। इस समय देश में लगभग 43 लाख 38 हजार 495 किसान जैविक खेती कर रहे हैं, जिसमें से अकेले सात लाख 73 हजार 902 मध्य प्रदेश के हैं।
जैविक खेती फसल उगाने की वह नई तकनीक है, जिसमें रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग करने के बजाय, जैविक खाद, हरी खाद, गोबर खाद, केंचुआ खाद का प्रयोग किया जाता है। जिस दौर में पर्यावरण को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है, उसमें जैविक खेती रसायनों से होने वाले दुष्प्रभाव से पर्यावरण का बचाव करती है। भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि और फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी करती है। जैविक खेती विधि द्वारा उगाया गया अनाज उच्च गुणवत्ता का होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होता है।
जैविक खेती का मतलब यह नहीं कि इसमें मानव निर्मित रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता। बल्कि जैविक खेती के कई तरीकों में भी मानव निर्मित उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग फसल उत्पादन में सुधार के लिए नहीं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए किया जाता है। इसका मतलब है कि ये रसायन मिट्टी में जाते हैं, लेकिन भोजन में नहीं जाते हैं।
हरित क्रांति के पहले से बढ़ती जनसंख्या और आय की दृष्टि से उत्पादन बढ़ाने की जरूरत महसूस होने लगी थी। फिलहाल अधिक उत्पादन के लिए खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है। इससे कम जोत वाले सामान्य और छोटे किसानों को खेती में अत्यधिक लागत लगानी पड़ रही है। इससे जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है। इसके साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे हैं। इसलिए इस प्रकार की सभी समस्याओं से निपटने के लिए पिछले कुछ सालों से सरकार जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है।
जैविक खेती काफी फायदेमंद साबित होगी। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है और जैविक खादों का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता की गुणवत्ता में निरंतर सुधार होता रहता है। यही नहीं, बल्कि इसमें सिंचाई की आवश्यकता कम होती और भूमि की जलधारण क्षमता भी बढ़ती है। जो पहले रासायनिक खादों के प्रयोगों से वातावरण प्रदूषित हो रहा था, जैविक खादों के प्रयोग से प्रदूषण रहित रहता है।
अनेक बीमारियों से इंसान और पशु-पक्षियों का बचाव होता है। जैविक खेती से उगाया गया अनाज सेहत के लिहाज से भी उच्च गुणवत्ता वाला होता है। इस तरह उगाए गए अनाज का मूल्य भी अधिक होता है, जिससे किसान की आमदनी में बढ़ोतरी होती है। यानी कम लागत में अच्छा मुनाफा।
जैसा कि हम देख रहे हैं, रासायनिक खाद और कीटनाशक मिट्टी को खराब कर रहे हैं, इससे निपटने में जैविक खाद बेहद मददगार साबित हो सकती है। यह भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ाती और इससे भूमि से पानी का वाष्पीकरण भी कम होता है। इसके साथ ही जैविक खेती से भूमि में नाइट्रोजन स्थिरीकरण बढ़ता है और मिट्टी का कटाव भी कम होता है, जो कि इस समय की बड़ी समस्या बनती जा रही है।
जैविक खेती पर्यावरण की दृष्टि से भी काफी लाभकारी है। इससे भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है। मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है। खाद बनाने के लिए कचरे का उपयोग करने से बीमारियों में भी कमी आती है।
जैविक खेती त्वरित रूप से फायदेमंद साबित होने वाला उद्यम नहीं है। इसके लिए वक्त देना पड़ता है। भारत के साथ कुछ अन्य देशों के किसानों के अनुभव बताते हैं कि रासायनिक खेती को तत्काल छोड़कर जैविक खेती अपनाने वाले किसानों को पहले तीन साल तक आर्थिक रूप से घाटा हुआ था, चौथे साल बराबरी का सौदा होता है और फिर पांचवें साल से लाभ मिलना शुरू होता है। ऐसे में बहुत सारे किसान शुरुआत में ही खेती की तकनीक बदल लेते हैं।
भारत में सत्तर फीसद छोटी जोत वाले सीमित साधन वाले किसान हैं। फिलहाल इन किसानों के पास पशुओं की संख्या भी तेजी से कम हो रही है, जिससे जैविक खाद उन्हें घर पर बनाना मुश्किल हो रहा है और उन्हें जैविक खाद बाजार से खरीदनी पड़ती है। वैसे तो जैविक खाद निर्माताओं की संख्या की दृष्टि से देखें तो भारत में साढ़े पांच लाख जैविक खाद निर्माता हैं, जो विश्व के जैविक खाद निर्माताओं का एक तिहाई हैं।
मगर भारत के निन्यानबे फीसद खाद उत्पादक असंगठित लघु क्षेत्र के हैं तथा इनमें से अधिकांश बिना प्रमाणीकरण करवाए जैविक खाद की आपूर्ति करते हैं।भारत सरकार द्वारा जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में भारत में जैविक खेती का क्षेत्र और उत्पादन तेजी से बढ़ा है। ‘आर्गेनिक फार्मिंग एक्शन प्रोग्राम’ 2017-2020 का उद्देश्य भी जैविक खेती को प्रोत्साहित और विकसित कर भारतीय कृषि को नए आयाम में ले जाना है। आज भारत में जैविक खेती में अपना योगदान देने के साथ ही यहां आठ लाख पैंतीस हजार पंजीकृत जैविक कृषि उत्पादक हो गए हैं।
हाल ही में आस्ट्रेलिया में दुनिया भर के वैज्ञानिकों की हुई बैठक में वैज्ञानिकों का कहना था कि अनुमान के अनुसार पचहत्तर अरब टन मिट्टी हर वर्ष बेकार हो रही है। इससे अस्सी फीसद खेती की जमीन की उर्वरा शक्ति पर असर पड़ रहा है। सिडनी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक व्यापक खोज की, जिसके अनुसार चीन की धरती कुदरती खाद के साधनों जैसे गोबर, गोमूत्र, पेड़ों के पत्ते आदि से ठीक न होने के कारण सबसे अधिक खराब हो रही है।
ऐसे ही भारत की धरती भी है, जहां रासायनिक खादों का अधिक प्रयोग है। यह खराबी चीन के मुकाबले बहुत कम है, फिर भी चिंताजनक है। यूरोपीय देशों में जमीन की खराबी चीन के मुकाबले एक तिहाई है, क्योंकि वहां रासायनिक खादों का उपयोग बहुत कम हो रहा है।
स्पष्ट है कि समस्या दिन पर दिन विकट होती जा रही है। ऐसे में इसका एकमात्र समाधान यह है कि भारत की परंपरागत धरती पोषण की नीति अपना कर गोबर, गोमूत्र और कंपोस्ट खाद का प्रयोग किया जाए। वैसे भी भारत में इसकी लंबी संस्कृति रही है। गोबर आदि की खाद से किसान युगों-युगों से अपनी धरती की उपज बढ़ा रहे हैं।
इसका व्यापक असर तब दिखेगा, जब सरकार हानिकारक रासायनिक खाद का आयात बंद कर किसानों को देसी खाद से खेती करने को प्रोत्साहित करे। शुरुआत के कुछ सालों तक दिक्कतें आएंगी, लेकिन सरकार किसानों के साथ खड़ी होगी, तब इसे अमलीजामा पहनाया जा सकता है। ऐसा न करने से भारत की खेती का वही हाल होगा जो चीन की खेती का हो रहा है।