One Nation One Election: देश में एक साथ चुनाव के मुद्दे पर विधि आयोग जल्द केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप सकता है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए तमाम राजनीतिक दलों और संबंधित संस्थाओं से भी बातचीत की गई है। सूत्रों का दावा है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव तक इसे लेकर तैयारी पूरी होना नामुमकिन है। अगर देश में एक साथ चुनाव कराने हैं तो कई राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल को एक देश एक चुनाव के हिसाब से कम ज्यादा करने में करीब 5 साल का समय लग जाएगा।
अगर देश में एक साथ चुनाव कराने हैं तो उसके लिए कई संशोधनों की जरूरत भी होगी। आयोग के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अगुवाई में इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। इसमें पुरानी रिपोर्ट के तथ्यों को भी परखा गया है। सूत्रों के मुताबिक अगर देशभर में एक साथ चुनाव कराने हैं तो संविधान में 5 बड़े संशोधनों की जरूरत पड़ेगी। इन संसोधनों के पास होने के बाद चुनाव आयोग को तैयारी शुरू करनी होगी। हालांकि चुनाव आयोग पहले ही कह चुका है कि वह हमेशा चुनावी मोड में रहता है। अगर उसे एक देश एक चुनाव के लिए कहा जाएगा तो वह उसके लिए पूरी तरह तैयार है। 2018 में विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ऐसा माहौल है कि देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने की जरूरत है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि मौजूदा नियमों के मुताबिक, एक साथ चुनाव संभव नहीं हैं कि इसलिए संविधान में कुछ संशोधनों की जरूरत है।
बता दें कि पिछले दिनों केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव को लेकर एक समिति का भी गठन किया है। इस समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं। विधि आयोग ने जो रिपोर्ट तैयार की है उसे समिति को भी भेजा जा सकता है।
एक देश एक चुनाव को लेकर केंद्र सरकार की ओर से पिछले काफी समय से प्रयास किया जा रहा है। इसके पीछे एक वजह भी है। दरअसल किसी भी जिले में सामान्य तौर पर चार बार आचार संहिता लगती है। लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, नगर निगर और पंचायत चुनाव के समय आचार संहिता लगती है। जब आचार संहिता लगती है तो इसका सीधा असर विकास योजनाओं पर पड़ता है। देश में लगातार चुनाव की स्थिति रहने से सरकार को नीतिगत और प्रशासनिक फैसले लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। कई जरूरी काम इससे प्रभावित रहते हैं।
एक देश एक चुनाव को लेकर आज भले ही देश में बहस जारी हो लेकिन आजादी के बाद देश में केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ ही होते थे। 1952 में जब देश में पहली बार आम चुनाव हुए तो उसके बाद राज्यों का चुनाव भी साथ ही कराया गया। इसके बाद 1957, 1962, 1967 में भी केंद्र और राज्य सरकारों के चुनाव एक साथ ही कराए गए। 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की बगवात के चलते सीपी गुप्ता की सरकार गिर गई और यहीं से एकसाथ चुनाव का गणित भी खराब हो गया। इसके बाद साल 1968 और 1969 में भी कुछ राज्यों की सरकारें समय से पहले ही भंग हो गई। 1971 की जंग के बाद लोकसभा चुनाव भी समय से पहले करा दिए गए। इससे चुनावी गणित बिगड़ गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में ओडिशा में एकसाथ चुनाव ही हुए थे।