लगातार बढ़ रहे तापमान से दुनिया भर के मौसम निगरानी संगठनों तथा शोधकर्ताओं के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। तत्काल हानिकारक गैसों के बेतहाशा उत्सर्जन, दूसरे सभी जिम्मेदार कारणों सहित प्रदूषण कम करने को लेकर दुनिया एकमत-एकजुट नहीं हुई, तो मानवता के विनाश के साथ प्रकृति, वायुमंडल, हरियाली, जलस्रोतों पर कैसा घातक असर होगा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
यह विडंबना है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर अब भी वैसी गंभीरता नहीं दिख रही है, जैसी अनेक विषम परिणामों के तत्काल बाद दिखनी थी। कम से कम परिस्थितिजन्य उस प्राकृतिक घटना से तो जबरदस्त हलचल होनी चाहिए थी, जो इसी साल तीन जुलाई को घटी। इस दिन विश्व में धरती, अब तक के ज्ञात इतिहास में, सबसे गर्म थी। उस दिन धरती का औसत तापमान 17.01 डिग्री सेल्सियस मापा गया।
वैज्ञानिकों के लिए यह बढ़ा तापमान बड़ी चिंता का विषय है। तापमान में मामूली उतार-चढ़ाव भी मायने रखता है। इसलिए यह भले बेहद कम लगे, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, इसके बहुत गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। मगर हम हैं कि जानकर भी अनजान हैं। यह न केवल बहुत बड़ी घटना, बल्कि चेतावनी भी है। इस अंतर को इस तरह भी समझा जा सकता है। जलवायु तापमान संबंधी कोई भी लेखा-जोखा, एक डिग्री के दसवें हिस्से से लेकर सौवें के अंतर तक भी टूटता है तो, असाधारण होता है। समझा जा सकता है कि तापमान में मामूली-सा लगने वाला यह उछाल कितना घातक है!
यही अंतर प्राय: मौसम का रौद्र रूप भी बनाता है। इसी से, दुनिया में कहीं जबरदस्त लू, तपन तो कहीं बाढ़, बारिश से बेहाली का माहौल बनता है। हाल में दुनिया भर के कई देशों में गर्मी, लू से बदहवासी जैसे हालात बने, जिसे दुनिया ने देखा, तो बेमौसम बारिश का कहर खुद भारत इस सितंबर में देख रहा है।
वहीं लीबिया में हुई बारिश ने हजारों लोगों की जान ले ली, जिन्हें दफनाने तक को जगह कम पड़ गई। गर्मी-सर्दी और बारिश का चक्र बुरी तरह बिगड़ गया है। अब आगे इसकी अनदेखी करना एक तरह से पृथ्वी पर मानव जीवन तथा अन्य जीव-जंतुओं, वनस्पतियों के मौजूदा अस्तित्व और उनके भावी उत्तराधिकारियों के साथ खिलवाड़ जैसा होगा।
भीषण गर्मी के प्रभाव को लेकर आई एक शोध रपट तो बहुत डरावनी है। पिछले साल मई से सितंबर के दौरान यूरोप में असहनीय गर्मी से 61, 600 लोगों की जान चली गई। आंकड़ा बेहद खतरनाक है। यूरोपीय स्वास्थ्य संस्थान की रपट बताती है कि विकसित पश्चिमी देशों तक में गर्मी से बचने के उपाय नाकाफी रहे।
कल्पना से ही सिहरन होती है कि गरीब तथा पिछड़े देशों की स्थिति कैसी होगी? संसाधनों और धन की कमी के चलते वहां के उजागर आंकड़े कितने सही और विश्वसनीय होंगे? सामने आई एक शोध रपट पैंतीस देशों में हुई मौत पर आधारित थी। ‘नेचर मेडिसिन’ जर्नल में प्रकाशित रपट में यह भी बताया गया कि जबरदस्त गर्मी से ग्रीस, इटली, पुर्तगाल और स्पेन में सबसे ज्यादा मौत हुर्इं। इनमें स्पेन में 11,324, जर्मनी में 8,173 और इटली में 1801 लोग धरती की तपन से जान दे बैठे।
इस वर्ष का जुलाई महीना पूरे विश्व की सुर्खियों में है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन यानी डब्लूएमओ और उसके सहयोगी संगठनों ने 3 जुलाई, 2023 को न केवल उपलब्ध आकड़ों में अब तक का सबसे अधिक गर्म दिन बताया, बल्कि एक लाख 20 हजार वर्षों में ऐसा पहली बार होने की आशंका जताई। हालांकि 2016 का अगस्त भी गर्म था।
तब अधिकतम तापमान 16.92 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। उस समय भी काफी बुरे प्रभाव दिखे थे। इतना बढ़ा तापमान कैसी जबरदस्त लू पैदा करने में सक्षम होता है, इसे सभी को समझ होगा। आगे स्थिति और कितनी खतरनाक होगी, इसकी चिंता भी जरूरी है।
सामान्यतया पृथ्वी का आदर्श तापमान 14 डिग्री सेल्सियस माना जाता है। बस इसी से समझा जा सकता है कि महज एक से दो डिग्री के बीच का मामूली उतार-चढ़ाव कैसे-कैसे कहर बरपाता है। इसी अंतर से त्रासदी की एक से एक भयावह तस्वीरें सामने आती हैं। यूरोपीय संघ के अंतरिक्ष कार्यक्रम की इकाई ‘कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस’ सहित दूसरे जलवायु निगरानी संगठनों ने भी सबसे गर्म जुलाई-2023 की पुष्टि कर दी है।
जुलाई की गर्मी का विश्वसनीय प्रमाण अंटार्कटिका के बढ़े तापमान से भी मिलता है। हैरानी और डराने वाली बात यह है कि जब शीत ऋतु थी और वहां का तापमान ऋणात्मक होना चाहिए, तब असामान्य रूप से उच्च तापमान 8.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। फरवरी के अंत में सामान्यतया अंटार्कटिका के समुद्र की बर्फ पिघलती है, जो जुलाई की सर्दियों में वापस जम जाती है।
मगर इस बार समुद्री बर्फ अपेक्षित स्तर के आसपास भी नहीं जमी। यूक्रेन के एक अनुसंधान दल ने जैसे ही यह परिवर्तन दर्ज किया और दुनिया को बताया, तो हर कोई हैरान और स्तब्ध रह गया।स्वाभाविक तौर पर इस सच का सबको पता होना चाहिए। माना कि जनसाधारण जलवायु परिवर्तन और पर्यवारण प्रदूषण को लेकर अब भी उतना जागरूक और सतर्क नहीं है, जितना होना चाहिए। लेकिन क्या हमारा सरकारी तंत्र भी इससे नावाकिफ है?
अमूमन भारत सहित दुनिया भर के कई देशों में, गर्मी में शुष्क जलवायु के कारण लू बहुत तेज होती है। बीते साल यूरोपीय देशों में भयंकर सूखा और जंगलों की आग की तबाही जबरदस्त थी। जुलाई 2022 में तो पुर्तगाल का तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। वहीं उत्तरी अफ्रीका का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा था। मध्य-पूर्व में इस बार सऊदी अरब में हज यात्रा पर गए लाखों लोगों ने असहनीय चिलचिलाती गर्मी का सामना किया।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ के अनुसार इस समय दुनिया में सबसे ज्यादा तापमान दक्षिण एशिया में रहता है। यह जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के चलते है। असामान्य रूप से बढ़ रहे तापमान का असर यों तो सब पर होता है, लेकिन बच्चे इसे सह नहीं पाते हैं। दक्षिण एशिया में अठारह साल से कम उम्र के 76 फीसद बच्चे ऐसे भीषण तापमान वाले क्षेत्रों में रहते हैं। इनकी संख्या 46 करोड़ के लगभग है। यहां वर्ष में 83 दिन तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बना रहता है। निश्चित रूप से बच्चों के कोमल शरीर के लिए कदापि अच्छा नहीं है।
अगर शीघ्र ही बढ़ते तापमान का कुछ निदान नहीं निकाला गया तो अगली वैश्विक महामारी पिघल रही बर्फ से आ सकती है। ‘प्रोसीडिंग्स आफ द रायल सोसाइटी’ की बी श्रेणी के ‘बायोलाजिकल साइंस’ जर्नल में प्रकाशित एक शोध में भी यही चिंता जताई गई है। दरअसल, जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने लगती है। इसमें जम कर दबे पड़े वायरस-बैक्टीरिया, जो सुप्तावस्था में होते हैं, बाहर आकर फिर जिंदा हो जाते हैं।
विज्ञान की भाषा में ‘वायरल स्लिपओवर’ की स्थिति में। वे उठ कर जब भी किसी मानव, जानवर, पेड़-पौधे के संपर्क में आकर पुन: सक्रिय होंगे तो नया कहर ढाएंगे। कई विश्लेषणों से इसकी पुष्टि हो चुकी है कि ये दुबारा जागकर जबरदस्त संक्रमण फैलाते हैं। ऐसे में जैसे-जैसे ग्लेशियर पिघलेंगे कैसी-कैसी दबी बीमारियां उभरेंगी, सोचकर ही डर लगता है।
लगातार बढ़ रहे तापमान से दुनिया भर के मौसम निगरानी संगठनों तथा शोधकर्ताओं के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। तत्काल हानिकारक गैसों के बेतहाशा उत्सर्जन, दूसरे सभी जिम्मेदार कारणों सहित प्रदूषण कम करने को लेकर दुनिया एकमत-एकजुट नहीं हुई, तो मानवता के विनाश के साथ प्रकृति, वायुमंडल, हरियाली, जलस्रोतों पर कैसा घातक असर होगा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अब भी तापमान जनित बीमारियों से मस्तिष्क, हृदय, गुर्दा, पाचन, श्वसन, अवसाद संबंधी कई बीमारियां बेतहाशा बढ़ रही हैं, जिससे आयु भी प्रभावित हो रही है।