क्या कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्पता का आरोप लगाने के बाद अकेले पड़ गए हैं? क्या उनके फाइव आइज सहयोगी और नाटो गठबंधन के सदस्य देश सीधे कनाडा का साथ नहीं दे रहे हैं? क्या ट्रूडो ने यह आरोप उनकी कनाडा में गिरती लोकप्रियता को संभालने के लिए लगाया है? हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया ने इस आरोप के बाद बयान जरूर दिए हैं, लेकिन उसमें एक लक्ष्मणरेखा यह खिंची हुई थी कि भारत को जांच में कनाडा का सहयोग करना चाहिए। लेकिन ये देश खुलकर कनाडा के साथ दिखाई नहीं दे रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र में संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों ने जब ट्रूडो से पूछा कि कनाडा के सहयोगी कहां हैं? एक पत्रकार ने जस्टिन से यह भी कह दिया कि ऐसा लगता है कि आप अकेले पड़ गए हैं? कुछ विशेषज्ञों की नजर में पश्चिमी सहयोगी देशों ने ट्रूडो को काफी हद तक उनके हाल पर छोड़ दिया है, क्योंकि वे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक और कनाडा की तुलना में 35 गुना बड़ी आबादी वाले भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते हैं।
ब्रिटेन के विदेश सचिव जेम्स क्लेवरली ने कहा कि कनाडा जो कह रहा है, उसे उनका देश बहुत गंभीरता से लेता है। लगभग समान भाषा में आस्ट्रेलिया ने कहा कि वह आरोपों से गहराई से चिंतित है। लेकिन शायद सबसे अधिक चौंकाने वाली चुप्पी कनाडा के दक्षिणी पड़ोसी अमेरिका से आई। दोनों देश घनिष्ठ सहयोगी हैं, लेकिन अमेरिका ने कनाडा की ओर से नाराजगी व्यक्त नहीं की।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने बाद में इस बात से इनकार किया कि अमेरिका और कनाडा में कोई दूरी है। उन्होंने कहा कि कनाडा से बारीकी से परामर्श किया जा रहा है। लेकिन अन्य सार्वजनिक बयान बहुत नीरस थे, जो इशारा कर रहे थे कि पश्चिमी दुनिया के लिए भारत का स्थान काफी अहम है। विशेषज्ञों का कहना है कि कनाडा के लिए समस्या यह है कि उसके हित वर्तमान में भारत के व्यापक रणनीतिक महत्त्व की तुलना में बहुत कम हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन और इन सभी पश्चिमी और हिंद-प्रशांत सहयोगियों ने एक ऐसी रणनीति बनाई है जो मुख्य रूप से भारत पर केंद्रित है। इसके पीछे चीन का प्रतिकार करना ही मुख्य मकसद है। विल्सन सेंटर के कनाडा इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता जेवियर डेलगाडो ने बीबीसी से कहा कि यह कुछ ऐसा है जिस पर ये पश्चिमी देश खतरा नहीं उठा सकते। हकीकत यह है कि वे खुलकर कनाडा के समर्थन में नहीं आए। यह मौजूदा भू-राजनीतिक वास्तविकता की तरफ संकेत है। कनाडाई नेटवर्क सीटीवी से बात करते हुए, कनाडा में अमेरिकी राजदूत डेविड कोहेन ने उन रिपोर्टों की पुष्टि की कि फाइव आइज भागीदारों ने इस मामले पर खुफिया जानकारी साझा की थी। लेकिन इन सहयोगी देशों ने हत्या की सार्वजनिक रूप से निंदा करने की कनाडा की अपील को खारिज कर दिया था।
फिर भी, अपेक्षाकृत चुप्पी विश्व मंच पर कनाडा की कमियों का भी संकेत हो सकती है। कनाडा एक भरोसेमंद पश्चिमी सहयोगी तो है, लेकिन अपने आप में एक वैश्विक शक्ति नहीं है। कनाडा इंस्टीट्यूट के निदेशक क्रिस्टोफर सैंड्स ने कहा, यह कमजोरी का क्षण है। उनका कहना है कि फिलहाल हम एक कमजोश शक्ति का क्षण देख रहे हैं। यह वह माहौल नहीं है जहां कनाडा चमकता है।निर्णायक चीज ताकत और पैसा है, जो कनाडा के पास नहीं है।
जब कनाडाई मुद्रास्फीति और उच्च ब्याज दरों से जूझ रहे थे, तब कनाडा के चुनावों में कथित चीनी हस्तक्षेप की खबरें आईं। इसके बारे में आलोचकों ने कहा कि ट्रूडो और उनके मंत्रिमंडल इसका संज्ञान लेने में विफल रहे। कनाडा के सबसे कुख्यात हत्यारे पाल बर्नार्डो को मध्यम सुरक्षा वाली जेल में स्थानांतरित किया जाने की खबरे से भी देश भर में आक्रोश फैल गया। सितंबर तक ट्रूडो की अनुमोदन रेटिंग तीन साल के निचले स्तर पर गिर गई। 63 फीसद कनाडाई लोगों ने अपने प्रधानमंत्री को अस्वीकार कर दिया, जो 2015 में चुने गए थे।
ग्लोब एंड मेल अखबार के मुख्य राजनीतिक लेखक कैंपबेल क्लार्क ने कहा,ट्रूडो एक ऐसी हस्ती हैं जैसा हमने कनाडा की राजनीति में पहले कभी नहीं देखी। चुनाव जीतने के बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ गई। लेकिन आठ साल तक बेहद चर्चित प्रधानमंत्री रहने के बाद, कनाडाई लोगों अब लगता है उनसे उकता गए हैं। क्लार्क ने कहा, ऐसा लगता है कि ट्रूडो की सितारा शक्ति फीकी पड़ गई है, खासकर हाल के महीनों में।