नवंबर 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद ने भारतवर्ष का प्रतिनिधित्व किया था और सनातनी परंपरा को विश्व के पटल पर सबके सामने रखा। अपने भाषण में स्वामी जी ने कहा था कि मैं उसी धर्म में शामिल अपने को गौरवान्वित महसूस करता हूं। हमलोग केवल दूसरे धर्मावलंबी के मतों के प्रति सहिष्णु हैं, ऐसा नहीं है। हम यह भी विश्वास करते हैं कि सभी धर्म सत्य है। मुझे गर्व है कि मैं उसी धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है।
इधर, डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन, जो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और करुणानिधि के पौत्र हैं तथा राज्य सरकार में मंत्री भी हैं, ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में सनातन धर्म पर विवादित टिप्पणी की थी, जिसके बाद से सियासत में भूचाल आ गया। स्टालिन ने कहा था कि सनातन धर्म सामान्य और सामाजिक न्याय के खिलाफ है, इसलिए इसका उन्मूलन डेंगू, मलेरिया, कोरोना की तरह किया जाना चाहिए। साथ ही कार्यक्रम में उदयनिधि ने कई अन्य विवादित और तीखी टिप्पणी भी की थी।
उसके बाद भाजपा के नेताओं ने कड़ा विरोध जताया और कहा कि इंडिया गठबंधन के नेताओं को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। लेकिन, उदयनिधि ने कहा कि उन्होंने समाज के सताए हुए और हाशिये पर डाल दिए गए लोगों की आवाज उठाई है, जो सनातन धर्म के कारण तकलीफ झेल रहे हैं। उदयनिधि ने यह भी कहा कि हम अपनी बात पर कायम हैं और किसी भी कानूनी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार भी हैं। हम द्रविड़ भूमि से सनातन धर्म को हटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इससे एक इंच भी पीछे नहीं हटने वाले हैं।
इधर, भाजपा के शीर्ष नेता व गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसकी आलोचना की। देश के कई साधु-संतों ने उदयनिधि की गर्दन काटकर लाने वालों को दस करोड़ रुपये का इनाम भी घोषित कर दिया और कई स्थानों पर प्राथमिकी भी दर्ज करा दी गई। फिर नहलें पर दहला यह हुआ कि कर्नाटक में मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा कि सनातन धर्म 3,500 वर्षों से है और आगे भी जारी रहेगा। इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सनातन धर्म पर उदयनिधि स्टालिन के विवादित बयान का समर्थन किया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सनातन धर्म पर अनर्गल बयान के लिए कांग्रेस पर कड़ा हमला करते हुए उसे आड़े हाथों लिया। ज्ञात हो कि डीएमके इंडिया गठबंधन में शामिल है और 2024 के शुरू में ही वहां विधानसभा का चुनाव है, जिसके कुछ दिन बाद लोकसभा चुनाव है। ऐसे में उदयनिधि स्टालिन के विवादित बयान का निहितार्थ यह निकला जा रहा है कि यह देश में दलितों को साधने का एक जोरदार बयान दिया गया है। निहितार्थ यह भी निकाला जा रहा है कि भाजपा द्वारा उपेक्षित दलितों को भाजपा से अलग करने का और अपने पक्ष में करने का यह एक सफल राजनीतिक प्रयास है। यदि ऐसा नहीं था, तो विश्लेषक यह कयास लगा रहे हैं कि देश के सुदूर दक्षिण तमिलनाडु और कर्नाटक में दिए गए बयान से भाजपा इतनी विचलित क्यों है?
कोई इस बात को समझे या न समझे, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने उदयनिधि के भाषण के निहितार्थ को समझा और खुलकर दलितों के पक्ष में वर्षों से उनके ऊपर सवर्णों द्वारा किए गए अत्याचार और दुर्व्यवहार को सार्वजनिक रूप में स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि हिंदुओं को गोमांस का सेवन करने के लिए तैयार रहना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि वंचित वर्गों का हिंदू धर्म में समावेश हो जाए। भागवत महाराष्ट्र के नागपुर के अग्रसेन छात्रवास में छात्रों को संबोधित कर रहे थे। अब उनके इस बयान पर देशभर में उनकी आलोचना शुरू हो गई है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपने ऐतिहासिक किताब ‘बोल्गा से गंगा’ में इस विषय पर लिखा है कि ‘ब्राह्मण संकृति के पुत्र, किंतु स्वत: क्षत्रिय राजा रांतिदेव अपनी अतिथि सेवा के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं।
वह सतयुग के सोलह हजार महान राजाओं में हैं। रांतिदेव के भोजनालय में प्रतिदिन दो हजार गाएं मारी जाती थीं। यहां अतिथियों के खाने के लिए गोमांस पकाने वाले दो हजार रसोइये थे। और, जिस दिन भी ब्राह्मण अतिथि इतने बढ़ जाते कि रसोइये को मांस की कमी के कारण सूप ज्यादा ग्रहण करने की प्रार्थना करनी पड़ती थी।’ इतिहासकार व भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद के पूर्व सदस्य, प्राचीन और मध्यकालीन भारत के विशेषज्ञ डीएन झा ने अपनी पुस्तक ‘द मिथ ऑफ़ होली काउ,(पवित्र गाय का मिथक) में गोमांस खाने पर विस्तार से लिखा है।
पुस्तक को पढ़ने से पता चलता है कि वैदिक काल में गोमांस खाना काफी आम था, जब बार-बार नारियल की बलि दी जाती थी। लेकिन, ग्रंथ के अनुयायियों द्वारा ब्राह्मणों की जांच करने पर ऐसा हुआ है कि इस प्रथा को धीरे-धीरे छोड़ दिया जाता है, और इसे साहूकारों में स्थानांतरित कर दिया जाता है। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से, गाय को तेजी से ‘हिंदू’ पहचान के प्रतीक के रूप में माना जाने लगा, दलितों को गोमांस के किसानों के रूप में चित्रित किया गया और हिंदू दक्षिणपंथियों ने हमेशा गलत तरीके से दावा किया है कि मुस्लिम भारत में हैं, गोमांस खाने की यही कहानियां हैं।
आइए, अब इस बात का विश्लेषण करें कि तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन को डेंगू और मलेरिया कहकर इसके उन्मूलन की बात क्यों कही और आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने गोमांस को जरूरत पर खाने की वकालत क्यों की? दरअसल, ईवी रामास्वामी पेरियार (सम्मानित व्यक्ति) तर्कवादी, नास्तिक और समाज के वंचितों के समर्थक होने के कारण उनकी सामाजिक और राजनीतिक जिंदगी में कई उतार- चढ़ाव आए। वर्ष 1944 में उन्होंने आत्मसम्मान आंदोलन और जस्टिस पार्टी को मिलाकर द्रविड़ मुनेत्र कजगम का गठन किया। उनका मानना था कि समाज में निहित अंधविश्वास और भेदभाव की वैदिक हिंदू धर्म में अपनी जड़ें हैं, जो समाज को जाति के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटता है जिसमें ब्राह्मण का स्थान सबसे ऊपर है।
इसलिए पेरियार सनातन और वैदिक धर्म के आदेश और ब्राह्मण वर्चस्व को तोड़ना चाहते थे। एक कट्टर नास्तिक के रूप में उन्होंने भगवान के अस्तित्व की धारणा का विरोध शुरू कर दिया। इसलिए उनके द्वारा गठित डीएमके की सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को नकारा, तो यह कोई नई बात नहीं है। सच में उदयनिधि स्टालिन का उद्देश्य समाज के शोषित, पीड़ित और वंचितों को पूरे भारत में अपने पक्ष में करना था। स्टालिन के इस भाषण पर इतनी चर्चा और हंगामा भाजपा नेताओं द्वारा किया गया कि अब स्टालिन का उद्देश्य पूरा हो गया है।
दुर्भाग्य यह है कि स्टालिन की चाल को उत्तर भारतीय नेताओं ने नहीं समझा और प्रधानमंत्री सहित गृहमंत्री और अध्यक्ष तक स्टालिन पर आक्रामक हो गए। लेकिन अब ऐसा लगता है कि सरसंचालक के बयान के बाद भाजपा नेताओं की समझ में यह बात आ गई कि यदि समाज में समानता लानी है, तो वही करना होगा, जिसकी चर्चा सरसंघ चालक अपने बयान में कर चुके हैं। क्योंकि, उनके नेता अब इस प्रकार अनाप-शनाप बयान देना बंद कर चुके हैं। इससे ऐसा लगता है कि यह बात उनकी समझ में अब आई है, लेकिन अब तो काफी देर हो चुकी है। अब होड़ इस पर मचेगी कि दलितों और समाज में तथाकथित समानता लाने के लिए गोमांस परोसा जाए या सनातन धर्म की बलि दे दी जाए, क्योंकि 2024 का चुनाव तो जीतना ही है। इसके लिए जो भी होगा, हम राजनीतिज्ञ करेंगे। अतः समाज में जो दलित और शोषित हैं, उनका दिल जो जीत लेगा, वही देश का अगला सिकंदर होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)