बिलकिस केस के दोषियों को समय से पहले रिहा करने के मामले की सुनवाई के दौरान एडवोकेट ने ऐसी दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ही उलझ कर रह गई। एडवोकेट 11 दोषियों में से किसी 1 की तरफ से पैरवी कर रहे थे। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के आर्टिकल 32 के तहत बिलकिस की याचिका की सुनवाई कर रहा है। लेकिन ये गलत है। इस मामले में सुनवाई संविधान के ही दूसरे आर्टिकल 226 के तहत की जा सकती है। एडवोकेट की दलील थी कि दोषियों को माफी देने के फैसले को आर्टिकल 226 के तहत केवल हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
एडवोकेट की दलील पर जस्टिस बीवी नागरथ्ना और जस्टिस उज्जवल भुयन भी उलझकर रह गए। जस्टिस नागरथ्ना ने कहा कि हमें नहीं पता है कि ऐसा भी कानून है। हालांकि फिर उन्होंने खुद भी माना कि आर्टिकल 32 की तुलना में आर्टिकल 226 का दायरा कहीं ज्यादा व्यापक है। जस्टिस ने कहा कि आर्टिकल 226 के तहत केवल मूलभूत अधिकारों के हनन का ही नहीं बल्कि दूसरे मसले भी विचार में लाए जा सकते हैं। जस्टिस भुयन ने एडवोकेट का काउंटर करते हुए कहा कि क्या दोषी संविधान के किसी आर्टिकल के तहत समय से पहले रिहाई की अपील कर सकते हैं।
एडवोकेट का जवाब था कि नहीं ये मूलभूत अधिकार नहीं है। एक अन्य दोषी की तरफ से पेश दूसरे वकील ने भी अपने साथी एडवोकेट की तरह से दलील दी। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार नहीं है कि वो दोषियों को मिली रिहाई के फैसले को खारिज कर सके। उनका कहना था कि जब एक अथॉरिटी ने रिहाई का फैसला दे दिया है तो पीड़ित की तरह से दोषियों के भी कुछ अधिकार हैं। दोषी अब लंबे अरसे से जेल से बाहर हैं। वो समाज के साथ घुलने मिलने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में उनकी रिहाई का फैसला रद्द होता है तो ये उनके अधिकारों पर चोट होगी।
जस्टिस नागरथ्ना ने एडवोकेट से सवाल किया कि क्या दोषियों को नियमों के तहत ही रिहाई दी गई है। क्या उनकी रिहाई का फैसला लेने के मसले पर सरकार ने सारे नियम कानूनों की पालना की है। उनका ये भी सवाल था कि क्या देश भर के कैदियों के मामले में वो ही नीति अमल में लाई जाती है जो बिलकिस के दोषियों के मामले में लाई गई। उनका कहना था कि अगर ऐसा है तो जेलों में भीड़ क्यों है। कैदी बाहर क्यों नहीं आ रहे। एडवोकेट का कहना था कि ऐसा है तो आर्टिकल 226 के तहत हाईकोर्ट की सुनवाई कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 4 अक्टूबर तक टाल दी।
ध्यान रहे कि बिलकिस के दोषियों को समय से पहले रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले का देश भर में विरोध हुआ था। कई लोगों ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। हालांकि पहले शीर्ष अदालत ने बिलकिस की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। लेकिन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले में दखल देते हुए सुनवाई के लिए स्पेशल बेंच गठित कर दी। उसके बाद से सुनवाई लगातार चल रही है।