संसद के विशेष सत्र सही मायनों में ऐतिहासिक साबित हो रहा है। सरकार की तरफ से सबसे पहले महिला आरक्षण बिल पेश किया गया और फिर अब आज यानी कि बुधवार को इसे लोकसभा से पारित भी कर दिया गया। इस बिल के पक्ष में 454 वोट पड़े हैं, यानी कि दो तिहाई से भी ज्यादा बहुमत के साथ ये पारित हुआ है। अब कल यानी कि गुरुवार को इसे राज्यसभा से भी पारित करवाना है। बड़ी बात ये है कि बिल पारित होने के बाद भी अभी इस समय ये कानून नहीं बन पाएगा।
असल में जब तक देश में जनगणना और परिसीमन नहीं हो जाता, नारी शक्ति वंदन अधिनियम कानून नहीं बन सकता है। यानी कि 2029 में ही महिलाओं को इस कानून का फायदा हो सकता है। अब इस बिल का ये वाला प्रावधन ही इसे विवादों में ला रहा है, विपक्ष सरकार की मंशा पर सवाल उठा रही है। सरकार का सिर्फ इतना तर्क है कि उनके लिए ये राजनीति का मुद्दा नहीं है, बल्कि महिला सम्मान का मुद्दा है, उन्हें समान अधिकार देने का मुद्दा है।
जब ये बिल कानून बन जाएगा तब महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण हो जाएगा। सरल शब्दों में लोकसभा की जो 543 सीटें हैं, वहां पर 181 महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। इसके अलावा देश में एसी-एसटी के लिए जो 131 सीटें आरक्षित रहती हैं, वहां भी 43 सीटें महिलाओं के लिए रहने वाली हैं। यहां ये समझना जरूरी है कि महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण 15 साल के लिए ही होगा। इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं।
अब इस बिल को जिस समय लोकसभा में पेश किया गया था, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इस बिल के जरिए एक तिहाई सीटें मातृशक्ति के लिए आरक्षित हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि इस देश की बेटी न केवल नीतियों के अंदर अपना हिस्सा पाएगी, बल्कि नीति निर्धारण में भी अपने पद को सुरक्षित करेगी। उन्होंने कहा कि कुछ पार्टियों के लिए ये बिल पॉलिटिकल एजेंडा हो सकता है, लेकिन मेरी पार्टी और मेरे नेता पीएम मोदी के लिए ये राजनीतिक मुद्दा नहीं है।