लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (एससी) व अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों को मिले आरक्षण को संविधान में दी गई 10 साल की मियाद से आगे बढ़ाने की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 21 नवंबर को सुनवाई करेगा।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जस्टिसेज की संविधान बेंच ने कहा कि वह 104वें संविधान संशोधन अधिनियम की वैधता पर सुनवाई करेगी। इसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एससी व एसटी समुदायों के लिए आरक्षण अगले 10 के लिए बढ़ाया गया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि वह पिछले संशोधनों के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को विस्तार दिए जाने की वैधता पर विचार नहीं करेगी।
डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच में जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। बेंच ने कहा कि एंग्लो इंडियन का आरक्षण संविधान के लागू होने के 70 वर्ष पूरे होने के बाद समाप्त हो चुका है, इसलिए 104वें संशोधन की वैधता एससी और एसटी समुदायों पर लागू होने तक ही सीमित होनी चाहिए।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सीए सुंदरम ने कहा कि मुद्दा ये है कि क्या आरक्षण की अवधि बढ़ाने वाले संवैधानिक संशोधनों से संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 334 में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण और मनोनयन के जरिये एंग्लो इंडियन समुदाय के विशेष प्रतिनिधित्व का विशेष प्रावधान एक निश्चित अवधि के बाद समाप्त हो जाएगा।
सीजेआई ने संसद और राज्य विधानसभाओं में एससी/एसटी समुदायों को आरक्षण प्रदान करने वाले 79वें संविधान संशोधन अधिनियम 1999 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दो सितंबर 2003 को मामले को पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया था।