रंजना मिश्रा
जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व की जैव विविधता प्रभावित हो रही है। इसके चलते पशु-पक्षी, नदियां, पर्वत, पठार सभी प्रभावित हो रहे हैं। कई क्षेत्रों में बर्फ पिघल रही है, जिससे बाढ़ की स्थिति पैदा होने से वहां रहने वाले जीव-जंतुओं पर खतरा मंडरा रहा है। लगातार तापमान बढ़ने से न केवल मनुष्यों, बल्कि पक्षियों के लिए भी विनाशकारी संकट उत्पन्न हो गया है।
अनेक पक्षी प्रजातियों की लगातार विलुप्त होती संख्या बड़ी चिंता का विषय है। इससे पूरे विश्व की जैव विविधता प्रभावित हो रही है। भारत में भी कई पक्षियों की प्रजातियां लगातार कम होती जा रही हैं। हाल ही में पक्षियों से संबंधित एक रपट में लगभग तीस हजार पक्षी प्रेमियों के आंकड़ों के आधार पर कहा गया है कि भारत में पक्षी प्रजातियों की संख्या में बहुत अधिक गिरावट देखने को मिली है।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर यही स्थिति बनी रही तो कई सौ पक्षी प्रजातियां धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर आ सकती हैं। इस रपट में 942 पक्षी प्रजातियों के मूल्यांकन के आधार पर पाया गया कि 142 पक्षी प्रजातियों में लगातार कमी हो रही है और केवल 28 प्रजातियां ऐसी हैं, जिनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है। ‘स्टेट आफ इंडियाज बर्ड्स’ के मुताबिक, ‘रैप्टर’ प्रवासी समुद्री पक्षी और बतखों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट देखने को मिली है।
जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व की जैव विविधता प्रभावित हो रही है। इसके चलते पशु-पक्षी, नदियां, पर्वत, पठार सभी प्रभावित हो रहे हैं। कई क्षेत्रों में बर्फ पिघल रही है, जिससे बाढ़ की स्थिति पैदा होने से वहां रहने वाले जीव-जंतुओं पर खतरा मंडरा रहा है। लगातार तापमान बढ़ने से न केवल मनुष्यों, बल्कि पक्षियों के लिए भी विनाशकारी संकट उत्पन्न हो गया है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से पक्षियों के घोंसले बनाने और प्रवासन करने जैसी वार्षिक घटनाओं का चक्र गड़बड़ा गया है, जिससे उनका प्रजनन प्रभावित हुआ है। इसीलिए पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर आ गई हैं। तेज गर्मी पक्षियों को अपना व्यवहार बदलने पर मजबूर कर रही है, जिसकी वजह से वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के बजाय अपने ही स्थान पर रहना पसंद करते हैं।
शहरीकरण के चलते दुनिया भर में पशु-पक्षियों के प्राकृतिक आवास नष्ट किए जा रहे हैं, जिससे उन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पशु-पक्षियों के जीवन और निवास की अनुकूलन क्षमता भी प्रभावित हो रही है। पेड़-पौधों और जंगलों के नष्ट होने से वहां पाई जाने वाली कई प्रजातियां नष्ट हो जाती हैं। भारत के शहरी क्षेत्रों में पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियों और कीटभक्षी प्रजातियों की संख्या सबसे कम देखी जा रही है।
शहरीकरण के चलते पशु-पक्षियों के प्राकृतिक आवास नष्ट होने के कारण वे अधिक वायु प्रदूषण और उच्च तापमान के संपर्क में रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जिससे वे अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं और उनका पूरा जीवन चक्र प्रभावित होता है। शहरों में ध्वनि प्रदूषण होने की वजह से गाने-गुनगुनाने वाले पक्षियों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
उन्हें तेज आवाज में गाने के लिए विवश होना पड़ रहा है। शहरों में प्रकाश प्रदूषण होने की वजह से वे भ्रमित होकर अपने मार्ग से भटक जाते हैं, ऊंची इमारतों से टकराकर उनकी मृत्यु तक हो जाती है। जंगलों के नष्ट होने और शहरीकरण बढ़ने से इनकी खाद्य आपूर्ति में भी कमी आ रही है, जो इनके जीवन के लिए बेहद खतरनाक स्थिति है।
भारत व्यावसायिक कृषि की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में अधिकतर उन बीजों को उगाया जा रहा है, जो कृषि नहीं, बल्कि व्यवसाय से संबंधित हैं। भारत में रबड़, काफी और चाय के वाणिज्यिक ‘मोनोकल्चर’ बागानों का तेजी से विस्तार हो रहा है। साल 2003 से 2020 तक चाय के बागान 5,214 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 6,366 वर्ग किलोमीटर हो गए हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और उत्तर-पूर्वी हिमालय में स्थित ‘हाटस्पाट’ के विस्तार के साथ देश भर में पाम तेल के बागानों में बढ़ोतरी हुई है। इससे पक्षियों की खाद्य आपूर्ति प्रभावित हो रही है। यही वजह है कि उनमें गिरावट देखने को मिल रही है।
पारंपरिक तरीकों के बजाय नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग करके बिजली पैदा की जा रही है। इसके लिए पवन चक्कियों और पनबिजली संयंत्रों की संख्या में वृद्धि हो रही है। पनबिजली संयंत्र ऐसे क्षेत्रों में स्थापित किए जाते हैं, जहां पानी की आपूर्ति सुनिश्चित होती है। ऐसे क्षेत्रों में पशु-पक्षियों के प्राकृतिक आवास भी होते हैं, जो इस प्रकार के निर्माण से नष्ट हो जाते हैं और इससे पक्षियों की प्रजातियां खतरे में पड़ जाती हैं।
पवन चक्कियों को तटीय क्षेत्रों, पश्चिमी घाट के पर्वत शिखरों, खुली शुष्क भूमि, कृषि भूमि और घास के मैदानों में स्थापित किया जाता है। इनके निर्माण से इन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पक्षियों की प्रजातियों पर बड़ा खतरा मंडराने लगा है। इनसे टकरा कर कई प्रकार की प्रजातियां नष्ट हो रही हैं।
पक्षी प्रजातियों की संख्या में होने वाली गिरावट को रोकने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जो उनके आवास, भोजन और प्रजनन के साथ-साथ उनके अस्तित्व से संबंधित विभिन्न खतरों का समाधान कर सके। आर्द्रभूमि, वन, घास के मैदान और तटीय क्षेत्रों जैसे महत्त्वपूर्ण पक्षी आवासों की पहचान करके उनकी सुरक्षा की जानी चाहिए।
इन प्रयासों में पुनर्नवीकरण, आर्द्रभूमि बहाली और आवास संरक्षण भी शामिल होना चाहिए। जल और वायु प्रदूषण के साथ-साथ अन्य स्रोतों से होने वाले प्रदूषणों को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है, क्योंकि प्रदूषण पक्षियों की आबादी को सीधे या उनके भोजन स्रोतों के माध्यम से नुकसान पहुंचा सकते हैं। उन आक्रामक प्रजातियों को प्रबंधित और नियंत्रित किया जाना चाहिए, जो संसाधनों के लिए देशी पक्षियों से प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं या उनके अंडों और बच्चों का शिकार कर सकती हैं।
वन्यजीव संरक्षण कानूनों को मजबूत बनाकर लागू करना आवश्यक है, जिसमें पक्षियों के शिकार, व्यापार और अवैध शिकार से संबंधित कानून भी शामिल हैं। पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों के महत्त्व के बारे में लोगों को शिक्षित और जागरूक करना बहुत जरूरी है। पक्षी प्रजातियों की संख्या में गिरावट का शीघ्र पता लगाने के लिए पक्षियों की आबादी की लगातार निगरानी करना जरूरी है।
नागरिक विज्ञान कार्यक्रम में जनता को डेटा संग्रह में शामिल किया जाना चाहिए। विभिन्न पक्षी प्रजातियों के लिए विशिष्ट खतरों को समझने और लक्षित संरक्षण रणनीतियों को विकसित करने के लिए अनुसंधान में निवेश किया जाना चहिए। संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए, संरक्षित क्षेत्रों के संजाल को बढ़ाया जाना जरूरी है।
पक्षियों के प्रवास को सुविधाजनक बनाने के लिए वन्यजीव गलियारे स्थापित करना बेहद महत्त्वपूर्ण होगा। सीमा पार करने वाले प्रवासी पक्षियों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी। कृषि वानिकी और जैविक खेती जैसी सतत कृषि प्रथाओं को प्रोत्साहित करना जरूरी है, जो पक्षियों के निवास स्थान के विनाश को कम करती और उनके लिए खाद्य सामग्री भी उपलब्ध कराती हैं।
इसके अलावा शहरी नियोजन में हरित स्थानों और पक्षियों के अनुकूल भवन डिजाइनों को शामिल किया जाना चाहिए। संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों को विलुप्ति के खतरे से बचाने के लिए उनके शिकार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाना जरूरी है।
स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पक्षी संरक्षण प्रयासों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों, स्थानीय समुदायों और स्वदेशी समूहों के साथ साझेदारी करनी होगी। संकटग्रस्त और गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी प्रजातियों के संरक्षण के लिए सुनियोजित पुनरुत्पादन कार्यक्रम विकसित और कार्यान्वित करने होंगे।
पक्षी प्रजातियों द्वारा सामना किए जाने वाले खतरों तथा उभरती जरूरतों के आधार पर संरक्षण रणनीतियों को लगातार अनुकूलित करना जरूरी है। वानिकी और खनन जैसे उद्योग, जो पक्षियों के आवासों को प्रभावित करते हैं, उनमें कारपोरेट जिम्मेदारी और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देना चाहिए।