Parliament Special Session: लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। मोदी सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दी दी है। सूत्रों मुताबिक, सरकार नए संसद में आज ही महिला आरक्षण बिल को पेश करेगी। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी लोकसभा में इस बिल को पेश करेंगी।
महिला आरक्षण बिल पिछले 27 साल से संसद में पेंडिंग है। महिलाओं के संसद में सीट आरक्षित करने का सबसे पहली कोशिश एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार ने सितंबर 1996 में किया था। उसके बाद से हर सरकार ने इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 2010 में इसे राज्यसभा में पारित कराने में भी कामयाब रही थी, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति और आम सहमति की कमी के कारण यह कदम सफल नहीं हो सका।
महिला आरक्षण को लेकर दूसरी कोशिश 1998 और 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने की। इस सरकार ने विधेयक को कई बार पारित कराने की कोशिश की। 13 जुलाई 1998 को तत्कालीन कानून मंत्री एम थंबी दुरई ने विधेयक पेश करने की कोशिश की, राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने अपना विरोध दर्ज कराया। हंगामे के बीच, एक राजद सांसद सुरेंद्र प्रसाद यादव ने अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी से विधेयक की प्रतियां छीन लीं और उन्हें फाड़ दिया। विधेयक को अगले दिन भी पेश करने के लिए सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन अध्यक्ष ने ‘आम सहमति’ संभव नहीं होने के कारण इसे टाल दिया।
वाजपेयी के नेतृत्व में दोबारा एनडीए सरकार बनाने के बाद 23 दिसंबर 1999 को तत्कालीन कानून मंत्री राम जेठमलानी ने यह विधेयक पेश किया था। एक बार फिर सपा, बसपा और राजद के सदस्यों ने इसका विरोध किया। वाजपेयी सरकार ने उसके बाद तीन बार – 2000, 2002 और 2003 में विधेयक को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उस समय मुख्य विपक्षी दलों जैसे- कांग्रेस और वाम दलों के समर्थन के बावजूद वह सफल नहीं हो सकी। 2003 में तत्कालीन अध्यक्ष मनोहर जोशी ने आम सहमति बनाने की कोशिश के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई, लेकिन असफल रहे।
इसके बाद यूपीए सरकार ने भी महिला आरक्षण बिल को लेकर कई बार कोशिश की, लेकिन एकमत राय नहीं बनने के कारण यह बिल हर बार ठंडे बस्ते में चला गया, लेकिन अब जब मोदी सरकार महिला आरक्षण बिल को ला रही है तो इस बिल को लेकर पहली बार सभी दलों ने अपनी सहमति व्यक्त की है। हालांकि, इस बिल को लेकर राजनीतिक दल खुद श्रेय लेने की होड़ में लगे हैं।