जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में, 13 सितंबर को प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मूल्य सूचकांक के मुताबिक वैश्विक स्तर की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मद्देनजर भारत में खाद्य वस्तुओं की कीमतें कुछ अधिक हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि इस समय बढ़ती महंगाई लोगों की जेब पर भारी पड़ रही है। महंगाई के लिए खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति संबंधी चिंताओं के बीच इस समय सऊदी अरब और रूस द्वारा तेल उत्पादन में कटौती के निर्णय से कच्चे तेल की कीमतें पिछले दस माह के उच्चतम स्तर 93 डालर प्रति बैरल से अधिक पर पहुंचने से महंगाई की चुनौती और कठिन हो गई है। ऐसे में सरकार के लिए महंगाई को कम करना बड़ा मुद्दा बन गया है।
पिछले दिनों भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के गवर्नर ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जुलाई 2023 में जो मुद्रास्फीति आपूर्ति शृंखला के झटकों के कारण ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी, उसे कम करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) के अनुसार जून 2023 में जो खुदरा महंगाई दर 4.87 फीसद तथा जुलाई में पंद्रह महीने के उच्चतम स्तर 7.44 फीसद पर पहुंच गई थी, वह अगस्त 2023 में कुछ घटकर 6.8 फीसद पर आ गई है। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के कारण खुदरा महंगाई दर केंद्र सरकार के छह फीसद की तय ऊपरी सीमा से अधिक है। आरबीआइ ने चालू वित्तवर्ष 2023-24 के लिए खुदरा महंगाई दर का अनुमान बढ़ाकर 5.4 फीसद कर दिया है।
इस समय खाद्य कीमतों में तेज बढ़ोतरी के कई कारण दिखाई दे रहे हैं। काला सागर अनाज समझौता खत्म करने के रूस के फैसले और गेहूं के भंडारण में कमी तथा प्रमुख खाद्य उत्पादन वाले क्षेत्रों में बारिश न होने के कारण अनाज के दाम बढ़ गए हैं। देश में फसलों पर सफेद मक्खी के प्रकोप और मानसूनी बारिश के असमान वितरण से सब्जियां महंगी हुई हैं। स्थिति यह है कि सीमित आपूर्ति के कारण देश में थोक गेहूं की कीमतें पिछले दो महीनों में तेजी से बढ़ी हैं। सरकार के गोदामों में भी गेहूं के भंडार में कमी आई है। बाजार में नकदी ज्यादा रहने से भी महंगाई बढ़ी है। मौसम विज्ञानियों ने इस बार अलनीनो के हावी रहने से भारत का 30 सितंबर तक मानसून के सामान्य से कम यानी 94 फीसद से कम बारिश के साथ समाप्त होने की बात कही है। मौसम विज्ञानियों के मुताबिक अलनीनो के अगले साल मार्च-अप्रैल तक इसी स्थिति में रहने की संभावना है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि देश में खाद्य कीमतों के कारण बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार और आरबीआइ ने कई प्रयास किए हैं। केंद्र सरकार ने 29 अगस्त को घरेलू रसोई गैस सिलेंडर के दाम दो सौ रुपए घटाकर बड़ी राहत दी है। 24 अगस्त को आयोजित आरबीआइ की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की द्विमासिक समीक्षा बैठक में टमाटर सहित अन्य सब्जियों की बढ़ती कीमतों के कारण ब्याज दर को न बदलते हुए 6.5 फीसद रखने का महत्त्वपूर्ण फैसला किया गया। केंद्र सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों के निर्यात पर लगातार सख्ती बरती जा रही है। पिछले साल रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद कम उत्पादन के कारण गेहूं के निर्यात पर जो पाबंदी लगाई थी, वह अब तक जारी है। सरकार ने बासमती चावल के निर्यात के लिए 1200 डालर प्रति टन को न्यूनमत मूल्य तय किया है। प्याज पर चालीस फीसद निर्यात शुल्क लगाया है। केंद्र ने 25 अगस्त से उबले चावल के निर्यात पर भी बीस फीसद शुल्क लगा दिया है।
गेहूं और चावल की बढ़ती कीमतों को काबू में करने की कोशिश में सरकार जुटी हुई है। इसलिए वह खुले बाजार में बिक्री योजना (ओएमएसएस) के जरिए रियायती दर पर गेहूं और चावल दोनों बेच रही है। इसी तरह सब्जियों, दालों और तिलहन के दाम काबू में रखने के लिए भी खास उपाय किए गए हैं। सरकार पेट्रोल का आयात खर्च घटाने और कम कीमत रखने के मद्देनजर पेट्रोल में दस फीसद एथेनाल मिला रही है। स्थिति यह है कि महंगाई नियंत्रण के विभिन्न प्रयासों के बावजूद अभी खाद्य महंगाई नियंत्रण में नहीं आ पाई है। वित्त मंत्रालय ने भी जुलाई की अपनी रपट में आगाह किया है कि वैश्विक तथा क्षेत्रीय अनिश्चितताओं और देश के भीतर आपूर्ति में अड़चनों की वजह से आने वाले महीनों में भी महंगाई ऊंची बनी रह सकती है। महंगाई पर नियंत्रण इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इसकी दर अधिक रहने से आम आदमी की मुश्किलों के साथ आर्थिक विकास भी प्रभावित होता है।
ऐसे में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति बढ़ाने और खुदरा महंगाई दर पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को अधिक कारगर उपायों के साथ आगे आना होगा। हालांकि पेट्रोल-डीजल के दामों में पिछले पंद्रह माह में गिरावट आई है, लेकिन बाजार में उनके दाम जस के तस बने हुए हैं। मई 2022 में कच्चे तेल की कीमत करीब 110 डालर प्रति बैरल थी, जो अभी 93 डालर प्रति बैरल है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर सीमा तथा उत्पाद शुल्क में और राज्यों सरकारों द्वारा वैट में कमी करने की दरकार है।
देश में जमाखोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई तेज करनी होगी। खाद्य पदार्थों के थोक एवं खुदरा व्यापारियों के लिए भी उपयुक्त भंडारण सीमा लागू करनी होगी। अतिरिक्त नकदी की निकासी पर रिजर्व बैंक को ध्यान देना होगा। भारत रूस से कच्चे तेल के आयात में छूट की तरह गेहूं के आयात पर भी छूट हासिल कर सकता है। दालों का आयात बढ़ाए जाने से दालों की महंगाई भी कम हो सकती है।
इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि भारत के पास अगस्त 2023 में 595 अरब डालर का जो विदेशी मुद्रा भंडार था, वह भी महंगाई नियंत्रण में अहम भूमिका निभा सकता है। भारत में खाद्य कीमतों को बढ़ने से रोकने के लिए जो निर्यात नियंत्रण के कदम उठाए गए हैं, उसके बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) समेत कई वैश्विक संगठन भारत से महत्त्वपूर्ण खाद्य वस्तुओं के निर्यात पर लगाए प्रतिबंध वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
वैश्विक स्तर पर खाद्य विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारत में खाद्य वस्तुओं की घरेलू कीमतों को काबू में रखने के लिए सरकार द्वारा जो बचाव की रणनीति अपनाई गई, उससे दुनिया में खाद्य महंगाई और बढ़ गई है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है और विश्व बाजार में इसकी हिस्सेदारी चालीस फीसद है। वहीं भारत चीनी और प्याज का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। ऐसे में भारत द्वारा निर्यात नियंत्रण से दुनिया में इनकी कीमतें बढ़ने लगी हैं।
चाहे इस समय दुनिया के अधिकांश देशों द्वारा अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई पर काबू करने की चिंताओं के कारण भारत के महंगाई नियंत्रण के उपायों की आलोचना की जा रही है, लेकिन भारत को भी वैश्विक महंगाई की चिंता करने से पहले अपने हितों का खयाल रखना होगा।
निस्संदेह भारत सरकार और रिजर्व बैंक को यह भी ध्यान में रखना होगा कि खासतौर से खाद्य वस्तुओं की कीमत नियंत्रण के लिए सरकार को ऐसे प्रावधान करने होंगे, जिससे आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित न हो। सरकार को रणनीतिक रूप से एक ऐसी मूल्य नियंत्रण समिति का गठन करना चाहिए, जो बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव को देखते हुए कीमतों के अनियंत्रित होने से पूर्व ही मूल्य नियंत्रण के कारगर कदम उठाए।