जम्मू-कश्मीर में अनंतनाग जिले के गडोले वन क्षेत्र में पिछले एक हफ्ते से आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में सुरक्षा बल के प्रतिकूल परिस्थिति में भी पूरी जिम्मेदारी से अपना काम कर रहे हैं। इस काम में 19-राष्ट्रीय राइफल्स (19-RR) के जवान खास तौर पर लगे हैं। ये जवान भारतीय सेना के लिए विशेष जिम्मेदारी के लिए तैयार किये जाते हैं। इनकी नियुक्ति से लेकर इनकी ट्रेनिंग तक सब कुछ अलग तरह का है।
सेना की आतंकवादी विरोधी सबसे घातक सुरक्षा बल यूनिट्स में शामिल राष्ट्रीय राइफल्स को खास तौर पर विशेष अभियान चलाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। रक्षा मंत्रालय के अधीन भारतीय सेना की एक शाखा और आतंकवाद रोधी दल में सेना की अन्य इकाइयों से सैनिकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाता है। यह बल इस समय केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तैनात है।
राष्ट्रीय राइफल्स के पास आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन में 33 वर्षों से अधिक का अनुभव है। राष्ट्रीय राइफल्स में 65 बटालियन शामिल हैं, इसमें करीब 80 हजार कर्मचारी हैं। इसे आतंकी हमलों को नाकाम करने और आतंकियों को ढेर करने के लिए खास तौर पर प्रशिक्षित किया जाता है। राष्ट्रीय राइफल्स में आधे जवान इंफेंट्री से लिए जाते हैं, जबकि शेष अन्य यूनिटों से होते हैं।
इसकी स्थापना के बारे में पहली बार 1990 में सोचा गया था। उस वक्त कश्मीर घाटी में आतंकवाद चरम पर था और पुलिस और अर्धसैनिक बलों इसे रोक पाने में सफल नहीं हो पा रहे थे। तब केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी। सरकार ने सेना को राष्ट्रीय राइफल्स बनाने की अनुमति दी थी। इसको खास तौर पर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ अभियान चलाने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन इसे देश के अन्य हिस्सों में भी तैनात किया जाता है। राष्ट्रीय राइफल्स में जवानों, जेसीओ और अधिकारियों को दो से तीन साल की अवधि के लिए प्रतिनियुक्ति पर शामिल किया जाता है।
राष्ट्रीय राइफल्स के जवान इस समय जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। इसके पहले भी राष्ट्रीय राइफल्स कई विशेष अभियान में सक्रिय रहा है। इस दौरान कई बड़े और खुंखार आतंकियों को पकड़ने और उनको मुठभेड़ में मार गिराने में सफलता पाई है।