Parliament Special Session Agenda: संसद का विशेष सत्र आज से शुरू हो रहा है। यह 18 से 22 सितंबर तक चलेगा। इस सत्र की कार्यवाही संसद के नए भवन में होगी। नया सत्र शुरू होने से पहले सरकार ने इसका एजेंडा भी जारी कर दिया है। सत्र के पहले दिन लोकसभा और राज्यसभा में 75 सालों में संसद की यात्रा पर होगी चर्चा। इस दौरान संविधान सभा से लेकर आज तक संसदीय यात्रा पर चर्चा होगी। लोगों के मन में सवाल है कि आखिर संसद का विशेष सत्र क्या होता है और इसे क्यों बुलाया जाता है? इसे विस्तार से समझते हैं।
सबसे पहले आपको बताते हैं कि संसद में पूरे साल में कितने सत्र बुलाए जाते हैं। सामान्यतः एक वर्ष में तीन सत्र आयोजित होते हैं। इसकी शुरुआत बजट सत्र से होती है। इसे फरवरी के महीने में बुलाया जाता है जो अप्रैल और कई बार मई तक चलता है। दूसरा सत्र मानसून सत्र है जो अमूमन तीन सप्ताह तक चलता है। यह जुलाई में शुरू होता है और अगस्त महीने में खत्म हो जाता है। संसदीय वर्ष का समापन शीतकालीन सत्र से होती है। यह सत्र भी तीन हफ्ते तक चलता है। शीतकालीन सत्र नवंबर में शुरू होता है और दिसंबर में खत्म हो जाता है। संविधान के मुताबिक संसद के दो सत्रों के बीच में छह महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। संसद के इन तीन सत्र के अलावा बुलाये जाने वाले सत्र को विशेष सत्र कहते है।
बजट, मानसून और शीतकालीन सत्र के अलावा सरकार अगर कोई और सत्र बुलाती है तो उसे विशेष सत्र कहा जाता है। विशेष सत्र बुलाने की परिस्थिति में सरकार सदन के हर सदस्य को तारीख और जगह बताती है। बता दें कि भारतीय संविधान में संसद के विशेष सत्र शब्द का कोई जिक्र नहीं है। हालांकि, सरकारों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले विशेष सत्र को अनुच्छेद 85(1) के प्रावधानों के अनुसार बुलाया जाता है। अनुच्छेद 85(1) के तहत बाकी सत्र भी बुलाए जाते हैं। सत्र बुलाने का निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा लिया जाता है और सांसदों को राष्ट्रपति के नाम पर बुलाया जाता है।
संसद का सत्र बुलाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास होता है। संसद सत्र बुलाने का निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति लेती है। कैबिनेट के प्रस्ताव को राष्ट्रपति औपचारिक मंजूरी देते हैं। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद संसद का सत्र बुलाया जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 85 (1) में लिखा है कि राष्ट्रपति जब भी उचित समझें संसद के किसी भी सदन को बैठक के लिए बुला सकते हैं। बता दें कि भारत में कोई तय संसदीय कैलेंडर नहीं होता है। अमूमन संसद की बैठक एक वर्ष में तीन सत्रों के लिए होती है। संविधान में कहीं भी विशेष सत्र शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
संसदीय इतिहास में अब तक सिर्फ 7 ही ऐसे मौके आए हैं जब विशेष सत्र बुलाया गया हो। सात में से तीन बार ऐसे सत्र तब बुलाए गए जब देश ऐतिहासिक उपलब्धियों का जश्न मना रहा था। 2 बार ऐसे मौके आए जब राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए विशेष स्तरों का आयोजन किया गया। 1977 में तमिलनाडु और नागालैंड और 1991 में हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए विशेष सत्र हुए। इसके बाद 2008 में विश्वास मत हासिल करने के लिए विशेष सत्र बुलाया गया। मोदी सरकार के कार्यकाल में एक बार विशेष सत्र बुलाया जा चुका है। यह विशेष सत्र 30 जून 2017 को सरकार ने जीएसटी को लागू करने के लिए संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित किया था।
सरकार की ओर से जारी किए गए एजेंडे के मुताबिक इस सत्र में ‘संविधान सभा से शुरू होने वाली 75 साल की संसदीय यात्रा’ पर चर्चा की जाएगी। साथ ही संविधान सभा से लेकर आज तक संसद की 75 वर्षों की यात्रा, उपलब्धियों, अनुभवों, स्मृतियों और सीख पर चर्चा के अलावा चार विधेयक भी सूचीबद्ध किए गए हैं। इसके अलावा सरकार चार विधेयक भी पेश करेगी जिनमें अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2023 और प्रेस एवं आवधिक पंजीकरण विधेयक 2023, डाकघर विधेयक 2023 और मुख्य निर्वाचन आयुक्त, अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा शर्त विधेयक 2023 भी शामिल है।