Old Parliament Building: संसद का विशेष सत्र आज से शुरू हो रहा है। 22 सितंबर तक चलने वाले इस सत्र में पहले दिन को छोड़कर बाकी दिन की कार्यवाही नए संसद भवन में होगी। गणेश चतुर्थी के दिन यानी 19 सितंबर को नए भवन में कार्यवाही की शुरुआत होगी। इसके साथ ही संसद का पुराना भवन इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा।
संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र के दौरान पहले दिन संविधान सभा से लेकर आज तक संसद की 75 वर्षों की यात्रा, उपलब्धियों, अनुभवों, स्मृतियों और सीख पर सांसद चर्चा करेंगे और इसके साथ ही पुराने संसद भवन की लोकतांत्रिक यात्रा पर विराम लग जाएगा, लेकिन सवाल यह है कि आखिर नए संसद भवन के बाद पुराने संसद भवन का क्या होगा?
पीएम मोदी ने 28 मई, 2023 को यानी इसी नए संसद भवन का उद्घाटन किया था। अब संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन की कार्यवाही नए संसद भवन में शुरू होने के बाद पुराने संसद भवन को एक स्थायी संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। सरकार के मुताबिक, पुराने संसद भवन को ढहाया नहीं जाएगा। इसे संरक्षित रखा जाएगा, क्योंकि यह देश की पुरातात्विक संपत्ति है। संसद से जुड़े कार्यक्रमों के आयोजन के लिए इस इमारत का इस्तेमाल किया जाएगा। 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुरानी संसद भवन को संग्रहालय में तब्दील किया जा सकता है। यह सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास प्रोजेक्ट के तहत केंद्र सरकार की योजना है। संसद भवन को संग्रहालय में तब्दील होने के बाद विजिटर्स लोकसभा चैंबर में बैठ भी सकते हैं।
आजाद भारत की पहली संसद से ही देश के संविधान को अस्तित्व में लाया गया था। सरकार का कहना है कि संसद भवन की समृद्ध विरासत का संरक्षण राष्ट्रीय महत्व का सवाल है। मूल रूप से पुरानी संसद भवन को काउंसिल हाउस कहा जाता है। इस इमारत में इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल थी। इसे भारत के लोकतंत्र की आत्मा माना जाता रहा है। पुरानी संसद भवन को ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियन्स और हर्बर्ट बेकर ने डिजाइन किया था। इस इमारत को तैयार करने में छह साल का समय लगा था। यह इमारत 1927 में जाकर तैयार हुई थी।
तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने पुराने संसद भवन का उद्धाटन 18 जनवरी, 1927 में किया था। इस इमारत ने ब्रिटिश काल के औपनिवेशिक शासन, दूसरा विश्व युद्ध, स्वतंत्रता की सुबह, संविधान बनने से लेकर कई विधेयकों को पारित होते देखा है। संसद में कभी गतिरोध हुए, कभी हंगामा हुआ तो कभी विवाद भी पैदा हुए और लोकतंत्र का यह इमारत उसका गवाह रहा। ब्रिटिश सरकार ने जब साल 1911 में राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित किया था. उस समय नयी दिल्ली के रायसीना हिल क्षेत्र में इसका निर्माण शुरू हुआ था।
सर एडविन लुटियंस के साथ रायसीना हिल क्षेत्र में नई शाही राजधानी को डिजाइन करने के लिए चुना गया था। ‘न्यू डेल्ही – मेकिंग ऑफ ए कैपिटल’ नामक पुस्तक के अनुसार उस समय के वायसराय लॉर्ड इरविन अपनी गाड़ी में ग्रेट प्लेस (अब विजय चौक) आये थे और और सर हर्बर्ट बेकर ने उन्हें सुनहरी चाबी सौंपी थी। उससे उन्होंने काउंसिल हाउस का दरवाजा खोलकर इसका उद्घाटन किया था।
15 अगस्त 1947 को इस भवन में भारतीयों ने सत्ता संभाली। यहीं से प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आधी रात को अपना प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ दिया था।
यह भवन संविधान सभा के सदस्यों द्वारा नए संविधान के लिए किए गए मंथन का भी गवाह है। 42वें संशोधन में एक ‘लघु संविधान’ का कार्यान्वयन भी देखा गया। यहां सिक्किम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य बने. भारत में दीव, दमन, दादरानगर हवेली और पुडुचेरी (तत्कालीन पांडिचेरी) को शामिल करने की चर्चा यहीं की गई।
1962 में चीन के ख़िलाफ़ भारत की हार और 1971 में पाकिस्तान पर देश की जीत ने सरकार और विपक्ष के बीच बहस देखी है। संसद ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भूमि विवादों को हल करने के लिए भूमि की अदला-बदली को भी अपनी मंजूरी दे दी है।
दहेज विरोधी अधिनियम (1961), बैंकिंग आयोग अधिनियम और आतंकवाद निवारण अधिनियम (2002) जैसे क़ानूनों को पारित करने के लिए संसद के संयुक्त सत्र बुलाए गए थे। इसके अलावा हर साल के पहले सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति संयुक्त सत्र को संबोधित करते हैं और सरकार की रूपरेखा पेश करते हैं।
जिमी कार्टर और बराक ओबामा जैसे विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को भारतीय संसद के संयुक्त सदनों को यहीं संबोधित करने का सम्मान मिला है। इसी संसद भवन में देश की अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण और कमीशन का प्रावधान किया गया था।
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के 50 साल और देश की आज़ादी के 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में रात में संसद की बैठक हुई और आधी रात तक ‘एक देश, एक कर प्रणाली’ के लिए जीएसटी पर बहस हुई। संसद ने पंचायती राज और स्थानीय स्वशासी निकायों को संवैधानिक दर्जा देकर सत्ता का विकेंद्रीकरण देखा है, लेकिव अब यह संसद भवन नए भवन को अपनी विरासत सौंपने के लिए तैयार है।