देवभूमि उत्तराखंड के ऋषिकेश से अचरज भरी खबर है। यहां दो गांवों- भट्टोवाला और घुमानीवाला में हिंदू धर्म से जुड़े लोग पूर्व में अपने ही परिवारों द्वारा ही बनाई मजारों को तोड़ रहे हैं। ये सभी मजारें इन लोगों की अपनी निजी जमीन पर बनी हुई हैं। जिन लोगों द्वारा इन मजारों का निर्माण किया गया था, उनमें से ज्यादातर ऊंची जाति से संबंध रखने वाले हैं।
ऋषिकेश के भट्टोवाला और घुमानीवाला गांव में चल रही इस मुहिम की शुरुआत उत्तराखंड सरकार के एंटी एंक्रोचमेंट ड्राइव की पृष्ठभूमि में सामने आई है। उत्तराखंड सरकार की एंटी एंक्रोचमेंट ड्राइव का मकसद सरकारी जमीन को हर तरह के अतिक्रमण (धार्मिक अतिक्रमण सहित) से मुक्त कराना है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के अनुसार, इन दोनों ही गांव में बनी मजारें करीब 15 से 20 साल पुरानी हैं और ये लोगों द्वारा खुद की अपनी निजी जमीन पर बनाई गई हैं।
गांव में मजारों के निर्माण के पीछे गांव के तकरीबन सभी लोग एक जैसे कारण बनाते हैं… लोग बताते हैं कि उनके परिवार के लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए एक स्थानीय फकीर के पास गए थे, जो पीर बाबा के नाम से पहचाना जाता है। उस फकीर ने ही अपनी जमीन पर उन्हें मजार के लिए जगह निकालने की सलाह दी थी। इस समय गांव में 35 परिवारों में से कम से कम 9 परिवारों ने अपनी प्रॉपर्टी पर बनी मजारों को पिछले कुछ हफ्तों में गिरा दिया है। कई अन्य लोगों का कहना है कि वो भी जल्द ही अपनी जमीन पर बनी मजारों को हटा देंगे।
गिरीश नेडवाल नाम के एक व्यक्ति ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उनके घर में उनकी मां के कहने पर मजार का निर्माण किया गया था। उनकी मां करीब 20 साल पहले तब पीर बाबा के पास गईं थीं, जब वो बीमार पड़ गए थे। हम इतने सालों तक इसे मानते रहे लेकिन अब हमारा मानना है कि यह सिर्फ कोरा अंधविश्वास है। उन्होंने कहा कि अब हम नहीं चाहते कि हमारी आने वाली जनरेशन हिंदू मान्यताओं से दूर हो जाए।
ऐसी ही मिलती-जुलती कहानी सुनाते हुए एक अन्य ग्रामीण दिनेश पुंडीर बताते हैं कि उनकी मां ने पांच साल पहले एक पीर बाबा से मिलने के बाद घर में मजार का निर्माण करवाया था लेकिन चार सालों से कोई वहां नहीं गया है। वो आगे कहते हैं कि हमारी मां ने यह सोचते हुए मजार का निर्माण करवाया कि इससे घर में गुड लक आएगा लेकिन हमें ऐसा नहीं महसूस होता। हमने तय कर लिया है कि अब इससे छुटकारा पाना है। उन्होंने बताया कि अन्य वास्तविक मजारों में कब्र होते ही लेकिन यहां बनाई गई मजारें सिर्फ प्रतीकात्मक हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, गांव में भले ही मजारें गिराई जा रही हों लेकिन यहां रहने वाले सभी परिवार इससे सहमत नहीं हैं। नाम न बताने की शर्त पर एक ग्रामीण ने बताया कि वे ऐसा “सिर्फ दबाव में” कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि गांव के कुछ लोग उन्हें मजार हटाने के लिए राजी करने के लिए आए थे, शुरुआत में उन्हें बुरा लगा क्योंकि इससे उनके परिवार की मान्यताएं जुड़ी हैं लेकिन गांव के अन्य परिवार मजारें तोड़ रहे हैं इसलिए उन्हें भी राजी होना पड़ा।
अपने घर से सबसे पहले मजार हटाने वाले भट्टोवाला गांव के मुखिया हरपाल सिंह राणा ने कहा कि ऐसी संरचनाओं की पहचान करने की हमारी कोशिश जारी है। जैसे-जैसे हम और परिवारों की पहचान करेंगे, हम उन्हें समझाने की कोशिश करेंगे। इस प्रयास में सिर्फ हिंदू शामिल हैं क्योंकि गांव में कोई मुस्लिम निवासी नहीं है। मजारों को हटाए जाने पर लोकल पुलिस अधिकारियों का कहना है कि तोड़ी गई सभी मजारें प्राइवेट जमीन पर बनी हैं और जमीन के मालिकों को उन्हें हटाने की खुद इजाजत दी है इसलिए मामले में हस्तक्षेप करने की कोई वजह नहीं है।