भारत मंडपम के चमकते सभागृह में जब नरेंद्र मोदी ने दुनिया के बड़े राजनेताओं को संबोधित किया तो अच्छा लगा कि विश्वास शब्द को उन्होंने बहुत बार बोला। प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्वास दुनिया के देशों के बीच घट गया है और इस विश्वास को दोबारा जीवित करना होगा। याद दिलाया मोदी ने कि भारत का मूल मंत्र है वसुधैव कुटुम्बकम।
याद ये भी दिलाया कि हमको आगे बढ़ना है इस बात को याद रखते हुए कि धरती एक है, परिवार एक है और भविष्य भी एक है। मोदी वैसे भी अच्छे वक्ता हैं लेकिन निजी तौर पर मुझे उनका ये भाषण ज्यादा पसंद आया। इसलिए कि दुनिया के आला राजनेताओं के चेहरों को देख कर साफ जाहिर हुआ कि अपने प्रधानमंत्री की बातों से सब प्रभावित हुए। बिलकुल वैसे हुए जब उन्होंने व्लादिमीर पुतिन को सलाह दी थी कि यह जमाना युद्ध का नहीं है।
दिल्ली के इस शिखर सम्मेलन के बाद मोदी के आलोचकों को भी मानना पड़ा कि बहुत शान से सफल हुआ ये सम्मेलन और इसका श्रेय सबने मोदी को दिया है। कूटनीति के विशेषज्ञों ने कहा कि इस सम्मेलन के बाद भारत ने करके दिखाया है कि विश्व में जो उसकी जगह होनी चाहिए वो अब लेकर रहेगा।
इन सारी बातों को जब मैं टीवी पर सुन रही थी और अगले दिन अखबारों में जी20 सम्मेलन की सफलता का विश्लेषण पढ़ रही थी तो ध्यान में आया कि प्रधानमंत्री ने जो बातें कही हैं विश्वास की और दुनिया के एक परिवार होने की ये चीजें हम क्यों नहीं अपने देश के अंदर कायम कर पाए हैं। इसके उलट, मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद तो ऐसा लग रहा है कि भारत के परिवार में बड़ी-बड़ी दरारें दिखने लग गई हैं।
हिंदुओं और मुसलमानों में जितने फासले अब दिखते हैं वे शायद ही बंटवारे के बाद इस हद तक दिखे हों। इन दूरियों के पीछे अगर कोई एक वजह है तो वह है नए किस्म का उग्र, क्रोधित हिंदुत्व जो फैला है देश भर में राष्ट्रीयता का चोला पहन कर। राष्ट्रीयता का आंदोलन इस किस्म का चला है जो दुश्मनों के खोज में हमेशा रहता है और जिसके सिपाही अक्सर दुश्मन ढूंढते हैं मुसलमानों में ईसाइयों में और पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित भारतीयों में। खास निशाने पे रहे हैं मुसलमान और इस्लाम। इस आंदोलन का नेतृत्व दो किस्म के लोग कर रहे हैं : एक हैं विद्वान और दूसरे हैं अर्ध-शिक्षित प्यादे जो गले में केसरी पटका पहन कर, माथे पे तिलक लगा कर शिकार करते हैं मुसलमानों का गोरक्षा के नाम पर।
पहलू खान को जब बहरोड़ के बाजार में सरेआम पीट-पीट कर मारा गया तो उसके हाथ में दस्तावेज थे जिनसे वो साबित करने की कोशिश कर रहा था कि उसने दो गायें पैसे देकर पशु मेले से खरीदी हैं। लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। पिछले दशक में ऐसी भीड़ के हाथों मुसलमानों की हत्याएं इतनी हुई हैं कि दुनियावालों को लगने लगा है कि भारत का अपना कुटुंब अब सुरक्षित नहीं है तो बाकी दुनिया को हम नसीहतें किस मुंह से दे रहे हैं? नफरत और हिंसा इस हद तक फैल चुकी है समाज के ताने-बाने में कि पिछले महीने रेलवे के एक सिपाही ने ट्रेन में मुसलमानों को खोज खोज कर मारा।
ऐसी हिंसक घटनाओं से नुकसान मुसलमानों का कम देश का ज्यादा हुआ है। इस किस्म की हिंसा को रोकने की गंभीर आवश्यकता है। यहां ये भी कहना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी चाहते तो भारत के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत और हिंसा के बदले अमन-शांति का माहौल बना सकते हैं। हर हिंसक घटना के बाद उम्मीद रहती है कि प्रधानमंत्री सख्ती से अपने सबसे उग्र भक्तों को रोक लेने का काम करेंगे। लेकिन हिंदुत्व के विद्वानों का कहना है कि ऐसा कर नहीं सकते हैं। इसलिए कि लोकसभा चुनाव अब सर पर है और यही लोग हैं जो मोदी को हर हाल में वोट देते हैं।
समस्या ये है कि जब अशांति और अराजकता फैलती है किसी देश में तो विदेशी निवेशक भागना शुरू करते हैं। कहने का मतलब है कि देश की आर्थिक तरक्की निर्भर है समाजिक और राजनीतिक शांति पर। जब भी इसका जिक्र मैंने किया है अपने किसी लेख में तो मुझे याद दिलाया गया है कि तनाव तब ही कम होगा जब प्रधानमंत्री इन हत्याओं की कड़ी निंदा करेंगे।
सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले गर्व से कहते हैं कि उनको मोदी ‘फालो’ करते हैं। समस्या ये भी है कि प्रधानमंत्री के अलावा भारतीय जनता पार्टी के कई बड़े राजनेता बेझिझक पक्षपात दिखाते हैं जब भी हिंदू-मुस्लिम तनाव हिंसा में बदल जाता है। पक्षपात इस हद तक कि दंगा होने के बाद घर तोड़े जाते हैं अक्सर सिर्फ मुसलमानों के, बस्तियां उजड़ती हैं सिर्फ मुसलमानों की। भारत के अपने कुटुम्ब में दरारें खाई बन रही हैं।
सो प्रधानमंत्री जी मेरी तरफ से विनम्र दरख्वास्त है कि आप उस तरह ही विश्वास, मानवता और शांति की बातें देश के अंदर बोलना शुरू करें। बिलकुल वैसी बातें जो विश्व के राजनेताओं के सामने की थीं। वसुधैव कुटुम्बकम की बातें हम कैसे कर सकते हैं जब हम अपने कुटुम्ब को ही सलामत नहीं रख पा रहे हैं।
विश्व के रंगमंच पर आप अपनी जगह बना चुके हैं इस में कोई शक नहीं है तो अब देश के अंदर भी दिखाएं कि आप वास्तव में सबका साथ, सबका विश्वास, सबका विकास चाहते हैं। वर्तमान हाल ये है कि हर सर्वेक्षण बताता है कि भारत के मुसलमानों में गहरा खौफ पैदा हो गया है कि वो अपने आपको अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनते देख रहे हैं। आपके परिवारजन क्या वे नहीं हैं?