मन एक नदी के समान है। जिस तरह नदी के पानी का प्रवाह कभी एक-सा नहीं रहता, कभी स्थिर नहीं रहता, इसी तरह की स्थिति मन की भी होती है। मन कभी स्थिर नहीं रहता। परिस्थितियों और परिवेश का असर मन के प्रवाह पर पड़ता रहता है। भारत जैसे महान देश में अभी जो कुछ हो रहा है, वह भी उसी प्रवाह का परिणाम है। सत्ता के लिए देश में अब ऐसा होने लगा है कि हमारा पतन ही होता जा रहा है और पता नहीं अभी नीचे और कितना पतन बाकी है। मेहनत की कमाई को मुफ्त में खाने का तरीका है जातिवाद, राजवाद, ब्रह्मवाद, यज्ञवाद। समाज में जनता को इस ‘वाद’ के जाल से तब तक नहीं बचाया जा सकता, जब तक वह खुद सचेत न हो, और उन्हें सचेत होने देना स्वार्थियों को पसंद नहीं होता।
अब अपने देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है, वह है इंडिया बनाम भारत। इस बात को सब जानते हैं कि इंडिया और भारत एक ही देश का नाम है, लेकिन अब इस पर भी बवाल खड़ा हो गया है। यह बात समझ में नहीं आती कि आखिर इस तरह का फितूर राजनीतिज्ञों के मन में आता कैसे है? प्रचलन में दोनों नामों की चर्चा होती रही है और खासकर केंद्रीय सरकारी कार्यालय के कामकाज में इंडिया नाम का ही प्रयोग किया जाता है, लेकिन जहां अपने पर, अपने देश पर गर्व करने का मुद्दा आता है, वहां भारत नाम का प्रयोग हम करते हैं। दोनों एक ही नाम हैं, जैसे सोना कहें या गोल्ड… बात एक ही है।
सरकारी और खासकर केंद्रीय सरकार के मामले में उसके पत्राचार में अंग्रेजी का ही प्रयोग किया जाता है जैसे- गवर्नमेंट आफ इंडिया ही लिखा जाता हैं, न कि गवर्नमेंट आफ भारत। अभी जी-20 शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ, तो जितने भी विदेशी मेहमान आए थे, सभी गवर्नमेंट आफ इंडिया के निमंत्रण पर यहां आए थे, लेकिन जब उन्हें रात्रि भोज के लिए प्रेसिडेंट आफ भारत का निमंत्रण मिला होगा, तो निश्चित रूप से वे कुछ पल के लिए भ्रमित हो गए होंगे कि अतिथि तो वे गवर्नमेंट आफ इंडिया के थे, लेकिन रात्रि भोज का निमंत्रण प्रेसिडेंट ऑफ भारत से आया है, आखिर यह मामला क्या है!
भारत में जी-20 की बैठक दो दिन चली। बैठक में कुल 29 देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए। बैठक में जी-20 सदस्यों में क्या विचार-विमर्श हुआ, इसकी पूरी जानकारी तो बाद में आती ही रहेगी, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रपति द्वारा रात्रिभोज में आमंत्रित न करने पर राहुल गांधी सहित देश के कई वरिष्ठ नेताओं ने सरकार की आलोचना करते हुए उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया है। आलोचकों का कहना है कि सबसे बड़े विपक्षी दल ने अध्यक्ष को भोज में सम्मिलित नहीं करना सत्तारूढ़ दल द्वारा विपक्ष का अपमान है।
जी-20 की बैठक के दौरान राहुल गांधी यूरोप के चार देशों- बेल्जियम (ब्रुसेल्स), फ्रांस (पेरिस), नीदरलैंड (हेग) और नॉर्वे (ओस्लो) की यात्रा पर थे। राहुल गांधी की इस यात्रा पर भाजपा की विशेष नजर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि हर बार की तरह इस बार भी विपक्ष को अपमानित करने के मामले में सत्तारूढ़ ने कोई कसर नहीं छोड़ी, इसलिए उसे डर है कि राहुल गांधी सरकार के खिलाफ अपनी बौद्धिक कार्यक्रम में कोई ऐसी बात न कर दें, जिससे सत्तारूढ़ दल का अपमान हो और उनकी कमियों की पोल विदेश में न खुल जाए।
इस बीच जो-जो बातें सामने आ रही हैं, वह तो और आश्चर्यचकित करने के साथ अविश्वनीय भी हैं। भाजपा से ही कई राज्यों के राज्यपाल रहे सत्यपाल मल्लिक ने खुलेआम सार्वजनिक मंच से आरोप लगाया है कि अदाणी का सारा रुपया प्रधानमंत्री का है। उन्होंने जनता से प्रश्न किया कि ‘आपने सुना है कि जो शिकायतकर्ता है उसकी जांच होगी या जिसकी शिकायत की गई है उसकी जांच होगी। मैंने शिकायत की तो मेरी ही जांच दो-दो बार की गई, लेकिन जिसकी शिकायत की गई, उसकी जांच नहीं कराई गई।’
अति तो तब और हो गई, जब उनके ही पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री को निरा अयोग्य घोषित कर दिया और उनका प्रधानमंत्री के पद पर बने रहना देश का दुर्भाग्य बताया।
कुछ दिनों से तो जनता का एक वर्ग भी प्रधानमंत्री के खिलाफ अनर्गल बातें करती नजर आती है। अब यह बात खुलकर सामने आने लगी है कि वर्तमान सरकार का जो कार्यकाल रहा है, वह देशहित में अच्छा नहीं रहा है और अब प्रधानमंत्री का प्रताप कम होने लगा है, क्योंकि अब उनकी पार्टी की छवि जनता के समक्ष उजागर हो गई है। उदाहरण के रूप में उत्तर प्रदेश के घोसी में हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की हार को देखा जा रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इकबाल कम हो गया है। विश्लेषक भाजपा की इस पराजय को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखते हैं, क्योंकि कहा यह जाता है कि दिल्ली में सत्ता पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही जाता है। ऐसे स्थिति में भाजपा की यह दुर्गति चिंता की लकीरों को गहरा कर देता है।
याद कीजिए वर्ष 2013 जब कांग्रेस के प्रति कितना दुष्प्रचार किया जा रहा था और भाजपा के लिए कितना प्रचार किया जा रहा था, गुजरात मॉडल की कितनी विशेषताएं बताई जा रही थीं। लोग मंत्रमुग्ध थे, आशाओं की एक तरह से बाढ़ आ गई थी। कितने खुश थे उस पर यह दिवास्वप्न कि देश के हर व्यक्ति के खाते में कम से कम पंद्रह लाख रुपये आएंगे, हर साल दो करोड़ बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। देश का हर व्यक्ति सुखी जीवन का स्वप्न देखने लगा था।
जहां जो भी आमने-सामने होता था, सभी आह्लादित थे कि खुशियों का एक प्रवाह आने वाला है, लेकिन एक बार नहीं, दो-दो बार जनता को इस तरह मंत्रमुग्ध कर दिया गया कि सब यह सोचने पर विवश हो गए कि ‘अच्छे दिन’ आने ही वाले हैं, लेकिन जब आंख खुली, तो सारे स्वप्न टूट चुके थे और गरीबी महंगाई और बेरोजगारी सामने खड़ा था। लेकिन, अब पछताए होत क्या। अब जी-20 में जिस तरह विदेशी मेहमानों के लिए पानी की तरह धन को खर्च करके उन्हें अपना जलवा दिखाने का प्रयास किया गया, यह देश देख रहा है। जिस देश के 80 करोड़ लोगों को खैरात बांटकर जीने का आधार दिया जा रहा है, वहां इस तरह के खर्च को क्या कहा जा सकता है, यह देश को सोचना है, बुद्धिजीवियों को सोचना है। देश आपके निर्णय का इंतजार करेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)