सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली के आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज (ACMS) को 1 अक्टूबर से शुरू होने वाले इंटर्न के मौजूदा बैच को 25,000 रुपये का मासिक वजीफा (stipend) देने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) से देश के 70 प्रतिशत मेडिकल कॉलेजों द्वारा MBBS इंटर्न को अनिवार्य वजीफा नहीं देने के आरोपों की जांच करने को भी कहा है। अदालत का यह आदेश उन डॉक्टरों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आया है जिन्होंने आर्मी बेस अस्पताल में सेवा देकर अनिवार्य एक साल की इंटर्नशिप पूरी करने के बाद इस साल मार्च में एसीएमएस से ग्रेजुएशन किया था।
सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को उस शिकायत का जवाब देने का निर्देश दिया कि 70 प्रतिशत मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस इंटर्नशिप करने वाले डॉक्टरों को कोई वजीफा नहीं देते हैं। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) को निर्देश देते हुए सवाल किया कि क्या मेडिकल इंटर्न के वजीफे से जुड़ी शिकायत सही है? एनएमसी इसे लेकर क्या कदम उठा रही है?
ACMS की ओर से पेश सीनियर वकील आर. बालासुब्रमण्यम ने कहा कि कॉलेज आर्मी के अधिकारियों के बच्चों की सेवा के इरादे से सेना कल्याण शिक्षा सोसायटी (एडब्ल्यूईएस) द्वारा बिना किसी आर्थिक सहायता के चलता है। वरिष्ठ वकील ने बताया कि संस्था को कोई सरकारी सहायता भी नहीं मिल रही है।
ACMS के वकील के तर्क पर CJI DY Chandrachud ने कहा कि वित्तीय बाधाएं छात्रों को वजीफा देने से इनकार करने का कारण नहीं हो सकती हैं। CJI DY Chandrachud ने कहा,”क्या आप कह सकते हैं कि हम सफाई कर्मचारियों को भुगतान नहीं करेंगे क्योंकि हम गैर-लाभकारी हैं? यह आपके लिए लाभ है लेकिन यह उनके लिए आजीविका है। क्या आप कह सकते हैं कि हम शिक्षकों को भुगतान नहीं करेंगे? हर किसी को माता-पिता का समर्थन नहीं मिल सकता इसलिए बच्चों को ऐसे काम में नहीं लिया जा सकता है।”
सीजेआई ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट लॉ क्लर्कों को वजीफे के रूप में प्रति माह 80,000 रुपये का भुगतान कर रहा है और कहा कि एसीएमएस को कम से कम 1 लाख रुपये का भुगतान करना चाहिए।
CJI DY Chandrachud ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट लॉ क्लर्कों को वजीफे के रूप में प्रति माह 80,000 रुपये का भुगतान कर रहा है और कहा कि एसीएमएस को कम से कम 1 लाख रुपये का भुगतान करना चाहिए।