Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में कहा कि पत्नी से अलग होने के बाद लंबे वक्त तक किसी दूसरी महिला के साथ रहने वाले पति को क्रूरता नहीं कहा जा सकता है, जब दोबारा मिलने की कोई भी उम्मीद न है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘अलगाव के इतने लंबे वर्षों के बाद पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं होने के बाद, पति को दूसरी महिला के साथ रहकर शांति मिल सकती है और यह उसे अपनी पत्नी से तलाक से वंचित नहीं कर सकता है।
कोर्ट ने कहा, ‘भले ही यह मान लिया जाए कि तलाक की याचिका लंबित होने के दौरान प्रतिवादी-पति ने दूसरी महिला के साथ रहना शुरू कर दिया है और उसके दो बेटे हैं, इसे अपने आप में इस मामले की विशिष्ट परिस्थितियों में क्रूरता नहीं कहा जा सकता है, जब दोनों पक्ष 2005 से एक साथ नहीं रह रहे हैं। अलगाव के इतने लंबे वर्षों के बाद पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं होने के बाद, प्रतिवादी पति को किसी अन्य महिला के साथ रहकर अपनी शांति और आराम मिल सकता है, लेकिन, यह तलाक की याचिका के लंबित रहने के दौरान की एक बाद की घटना है और क्रूरता के सिद्ध आधार पर पति को पत्नी से तलाक से वंचित नहीं किया जा सकता है।” इसमें कहा गया है कि इस तरह के संबंध का परिणाम प्रतिवादी-पति, महिला और बच्चों को भुगतना होगा।
कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर पति को तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला की याचिका खारिज कर दी। इस जोड़े की शादी 3 दिसंबर 2003 को हुई थी, लेकिन जल्द ही विवाद पैदा हो गया और वे 2005 में अलग रहने लगे।
आरोप लगाया गया कि पत्नी ने कई समस्याएं पैदा करके अपने पति के साथ क्रूरता की। यहां तक कि उसने अपने भाई और रिश्तेदारों से उसकी पिटाई भी करवाई। बताया गया कि पत्नी और उसके परिवार के सदस्यों को आईपीसी की धारा 506 (II) के तहत भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है।
पत्नी ने तर्क दिया कि उन्होंने एक भव्य शादी की थी। इसके बावजूद पति ने कई मांगें कीं। उसने कहा कि उसकी सास ने उसे कुछ दवाइयां इस आश्वासन के साथ दी थीं कि बेटा पैदा होगा, लेकिन इसका मकसद उसका गर्भ गिराना था। मामले पर विचार करने के बाद कोर्ट ने कहा कि भले ही पत्नी ने दावा किया था कि उसे दहेज के लिए उत्पीड़न और क्रूरता का शिकार होना पड़ा, लेकिन वह अपने दावे को साबित नहीं कर पाई और यह क्रूरता का कृत्य है।
कोर्ट ने कहा कि अपील में ही महिला ने पहली बार दावा किया था कि उसके पति ने शादी की और दो बेटों को जन्म दिया। हालांकि, बेंच ने कहा कि कथित दूसरी शादी का न तो कोई विवरण और न ही कोई सबूत रिकॉर्ड पर पेश किया गया है या पुलिस को दी गई शिकायतों में दिया गया। इसके बाद कोर्ट ने महिला की अपील को खारिज कर दिया और ट्रायल कोर्ट के दिए गए फैसले को बरकरार रखा।