मंदिरों में कितनी महिला पुजारी देखने को मिलती हैं? शायद एकाध कहीं दिख जाती हैं। हालांकि यह अलग बात है कि मैंने आजतक किसी महिला पुजारी को मंदिर में पूजा करते हुए नहीं देखा। हो सकता है कि यह एक संयोग हो। हालांकि अब एक नए युग की शुरुआत हो रही है। आपको जानकर खुशी होगी कि तमिलनाडु सरकार की पहल पर पहली बार तीन महिलाओं ने तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में श्री रंगनाथर मंदिर की ओर से संचालित अर्चाकर ट्रेनिंग स्कूल में पुजारी बनने की ट्रेनिंग पूरी की है। यानी अब ये महिलाएं मंदिर की पुजारी बन सकेंगी।
इस पहल के बारे में मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा, यह “समावेशिता और समानता के एक नए युग” की शुरुआत है। उन्होंने कहा कि जब महिलाएं पायलट और अंतरिक्ष यात्री बन रही थीं उस समय भी उन्हें कई मंदिरों में पुजारी बनने की अनुमति नहीं थी क्योंकि इसे अशुद्ध समझा जाता था। वे देवियों के मंजिर में भी पुजारी नहीं बन सकती थीं लेकिन अब महिलाएं भी पवित्र स्थानों में कदम रख रही हैं। वे समावेशिता और समानता का एक नया युग ला रही हैं। यह एक बदलाव की शुरुआत है।
मंदिर की पुजारी बनने के लिए एस राम्या, एस कृष्णवेनी और एन रंजीता ने श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर से जुड़े अर्चाकर (पुजारी) पेयिरची पल्ली में प्रशिक्षण लिया। दरअसल, डीएमके सरकार के 2021 में सत्ता में आने के बाद पुजारियों के प्रशिक्षण के लिए ऐसे संस्थानों को पुनर्जीवित किया गया। इसके लिए एक कार्यक्रम की शुरुआत हुई। जिसे 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने शुरू किया था। तीनों महिलाएं अपने कौशल को और निखारने के लिए प्रमुख मंदिरों में एक और साल बिताएंगी और इसके बाद योग्यता के आधार पर उन्हें पुजारी के रूप में नियुक्ति किया जा सकता है।
राम्या ने गणित में एमएससी की है। वे बैंकिंग या शिक्षक बनने की उम्मीद कर रही थीं। उनका कहना है कि उन्हें जानकारी मिली कि सभी जातियों की महिलाओं और पुरुषों को पुजारी के रूप में प्रशिक्षित करने के लिए ट्रेंनिंग दी जा रही है। इसके बाद वे इस कार्यकर्म से जुड़ गईं। उनका कहना है, “मैं उत्सुक थी… जब सभी नौकरियों में महिलाएँ हैं तो यह करने में सक्षम होना चाहिए। वैसे भी जब मंदिरों, अनुष्ठानों और पूजा की बात आती है तो मैं इससे अनजान नहीं हूं।
राम्या ने आगे कहा कि शुरुआत में मंत्र सीखना कठिन था। यह भगवान की पूजा है, लेकिन इसकी प्रक्रिया सटीक और तीव्र है। एक बच्चे की देखभाल की तरह हमें सिर से लेकर पैर तक इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। हमने पंचरत्नम आगम के बारे में सीखा। यह मुख्य रूप से तमिल में है हालांकि इसमें कुछ संस्कृत तत्व भी शामिल हैं। राम्या ने आगे कहा कि उनके दादा और चाचा गांवों में छोटे समारोहों के लिए पूजा करवाते थे। मैंने भी दो बार उनके साथ पूजा करवाई है।
राम्या का कहना है, “हमें महिला पुजारी बनने का कोई डर नहीं है। हमें उम्मीद है कि इससे अधिक से अधिक महिलाओं पुजारी बनने का अवसर मिलेगा। हमारे बैच में 22 छात्र थे जिनमें सिर्फ तीन महिलाएं थीं मगर एक महीने पहले शुरू हुए नए बैच में 17 लड़कियां हैं!”