सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ अक्सर अपना आपा नहीं खोते। लेकिन जब वो खो देते हैं तो उनको संभालना मुश्किल हो जाता है। आज भी कुछ वैसा ही हुआ। अपनी कोर्ट में एक जूनियर एडवोकेट को देखकर सीजेआई भड़क गए। इतना भड़के कि एडवोकेट ऑन रिकार्ड को मिन्नतें करनी पड़ीं। लेकिन सीजेआई का पारा नीचे नहीं आया। आखिरकार सीनियर एडवोकेट को जुर्माना देकर अपनी जान बचानी पड़ी, तब सीजेआई शांत हुए।
दरअसल सीजेआई कोर्ट नंबर 1 में बैठे थे। उनके साथ बेंच में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा भी थे। एक केस की सुनवाई का नंबर आया तो एडवोकेट ऑन रिकार्ड की बजाए एक जूनियर वकील पेश हुआ। सीजेआई से उसने मामले में स्थगन (Adjournment) मांगा। सीजेआई बोले कि आप बहस की कीजिए। वकील का तर्क था कि उसे केवल इतना कहा गया है कि कोर्ट में पेश होकर स्थगन ले लेना।
लेकिन सीजेआई दूसरे ही मूड़ में थे। वो बोले कि आपको जो कुछ भी कहा गया हो पर जब आप कोर्ट में आ गए हैं तो अपनी दलीलें तो रखिए। जूनियर वकील की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। वो फिर से बोला कि उसे बहस करने से मना किया गया था। सीजेआई ने फिर से जोर किया तो वो बोला कि उसे नहीं पता कि ये केस क्या है।
उसके बाद सीजेआई का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उन्होंने जूनियर वकील को फटकार लगाते हुए कहा कि एडवोकेट ऑन रिकार्ड को मेरी अदालत में पेश होने को बोलें। वकील ने अपने सीनियर को सारा वाकयाा बताया तो वो भागे भागे सीजेआई की कोर्ट में पहुंचे। उन्होंने डीवाई चंद्रचूड़ से माफी मांगी कि गलती से जूनियर वकील को उनकी कोर्ट में भेज दिया था।
सीजेआई दलीलों से नहीं माने। वो बोले कि संविधान कहता है कि मैं अपनी कोर्ट में सुनवाई करूं। आप जूनियर वकील को भेज देते हैं। वो भी ऐसा जिसे केस की जानकारी ही नहीं है। इससे मेरा समय तो जाया हुआ ही उस जूनियर एडवोकेट पर भी असर पड़ा है। वो कैसे एक अच्छा वकील बन पाएगा। आप उसे केस की जानकारी देकर तो भेजते। सीनियर एडवोकेट मान मनुहार करता रहा लेकिन सीजेआई पर कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने उसकी जान तब छोड़ी जब वो जुर्माना भरने पर सहमत हुआ।