सत्येंद्र किशोर मिश्र
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्पष्ट है कि राज्य हो, संस्था या स्वयं छात्र, किसी पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। हालांकि यह मातृभाषा सहित भारतीय भाषाओं के सीखने की आवश्यकता पर जोर अवश्य देती है। इसी से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तार्किक रचनात्मकता को बढ़ाते हुए ‘क्या सोचें’ से ‘कैसे सोचें’ की ओर बढ़ने की कोशिश कर नए भारत की बुनियाद बनेगी।
भाषा किसी भी राष्ट्र की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान के साथ बेहतर मानव संसाधन तैयार कर वैश्विक आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक उन्नयन की संभावनाएं बढ़ा सकती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी एनईपी भारत की मौजूदा शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल बदलाव का दस्तावेज है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यानी यूएनडीपी के सतत विकास लक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में एनईपी का मुख्य मकसद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सार्वभौम पहुंच के साथ समावेशी तथा सतत विकास है। बहुभाषी भारत में इस बदलाव का महत्त्वपूर्ण जरिया भाषाएं बन सकती हैं।
दुनिया भर में लगभग सात हजार भाषाएं बोली जाती हैं, पर प्रमुख तेईस भाषाएं आधी से अधिक वैश्विक आबादी की भाषा हैं। लगभग दो सौ भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें एक लाख से अधिक लोग बोलते हैं तथा नब्बे फीसद भाषाओं को बोलने वालों की संख्या एक लाख से भी कम है। लगभग साढ़े तीन सौ भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें मात्र पचास लोग तथा छियालीस भाषाओं को बोलने वाले मात्र एक-एक हैं।
भारत में अमूमन सोलह सौ भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें तीस भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें बोलने वालों की आबादी दस लाख से अधिक है। एक सौ बाईस भाषाएं कम से कम दस हजार लोग बोलते हैं। भारत सहित दुनिया की कई भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं। भारत की दस फीसद भाषाएं अगले पचास वर्षों में विलुप्त हो जाएंगी। विश्व में लैटिन अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया अपनी भाषाई विविधता खोते जा रहे हैं, उनकी भाषाएं खतरे में हैं।
संविधान के अनुच्छेद 350ए में प्रावधान है कि राज्य प्रयास करेगा कि प्राथमिक शिक्षा, खासकर भाषाई अल्पसंख्यक समूह के बच्चों की, मातृभाषा में हो। कोठारी आयोग ने माना था कि भारतीय भाषाओं तथा साहित्य का संरक्षण, शैक्षिक और सांस्कृतिक विकास हेतु जरूरी हैं। मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा से बच्चों में अपनी संस्कृति और विरासत के प्रति स्वाभिमान जागृत होता है। अब तक की सभी शिक्षा नीतियों के अंतर्निहित सिद्धांत में मातृभाषा/ क्षेत्रीय भाषा में प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना रहा है।
त्रि-भाषा सूत्र में पहली भाषा, मातृभाषा/ क्षेत्रीय भाषा ही है। दूसरी भाषा हिंदी भाषी राज्यों में अन्य आधुनिक भारतीय भाषाएं या अंग्रेजी है। गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह हिंदी या अंग्रेजी है, तीसरी भाषा अंग्रेजी या आधुनिक भारतीय भाषा है। जब प्राथमिक शिक्षा स्थानीय/ मातृभाषा में हो, तो बच्चा सहजता से सीखता है, दक्षताएं आसानी से विकसित होती हैं तथा अवधारणाओं की बेहतर समझ आती है। पर भारत में भाषा एक सियासी प्रश्न रहा है, जिसके दीर्घकालिक राजनीतिक-सामाजिक प्रभाव रहे हैं।
प्रश्न है कि इसे चुनेगा कौन तथा किसकी पसंद सर्वोपरि है? क्या छात्रों को अपनी शिक्षा की भाषा चुनने की आजादी है? कब स्थानीय भाषा को मातृभाषा माना जाए? देशभर में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कौन-सी भाषा पढ़ाई जाए? अल्पसंख्यक भाषा-भाषी लोगों के भविष्य के बारे में क्या? ऐसे में जबकि शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों की भारी कमी से छात्र-शिक्षक अनुपात गड़बड़ा गया है तथा शिक्षा में सरकारी वित्त पोषण खत्म हो रहे हैं, यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि भाषायी अल्पसंख्यकों का ध्यान कैसे रखा जाए?
बच्चे दो से आठ वर्ष की उम्र यानी प्राथमिक कक्षाओं में अपनी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में जल्दी तथा अच्छा सीखते हैं, इसलिए शिक्षा का माध्यम बच्चे के परिवेश की भाषा होनी चाहिए। एनईपी में बुनियादी स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा पर विशेष जोर देने के साथ ही आगे विभिन्न भाषाओं के शिक्षा की व्यवस्था है। एनईपी में पांचवीं, और अगर संभव तो आठवीं कक्षा तक मातृभाषा/ स्थानीय भाषा/ क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने का संकल्प है। प्रारंभिक वर्षों में मातृभाषा में पढ़ना और बाद में लिखना, श्रेणी तीन तथा उसके आगे अन्य भाषाओं में पढ़ने-लिखने के कौशल विकसित किए जाएंगे।
पर शिक्षण सामग्री मात्र कुछ मानक भाषाओं में उपलब्ध है, इसलिए जनजातीय भाषाओं सहित अधिकांश भाषाओं में पाठ्य सामग्री की जरूरत होगी। शिक्षकों और छात्रों के मध्य संवाद, जहां भी संभव हो, मातृभाषा/ स्थानीय भाषा में होगा। जिनके बोलचाल की भाषा प्राथमिक शिक्षा की भाषा से भिन्न होगी, उन छात्रों के साथ द्विभाषी शिक्षण सामग्री सहित द्विभाषी तरीका भी अपनाया जाएगा।
किसी भी भाषा को सीखना एक बात है और शिक्षा में उसका उपयोग, दूसरी बात। एनईपी में संवैधानिक प्रावधानों, लोगों, क्षेत्रों और संघ की आकांक्षाओं तथा बहुभाषावाद के साथ, राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने हेतु त्रि-भाषा सूत्र जारी रखा गया है। पर, इसमें अधिक लचीलापन है, किसी पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। तीन भाषाएं सीखना राज्य, क्षेत्र तथा निश्चित रूप से स्वयं छात्र का विकल्प होगा, जिसमें कम से कम दो भारतीय भाषाएं होंगी।
छात्र चयनित तीन भाषाओं में बदलाव माध्यमिक कक्षा में कर सकेंगे। विभिन्न भाषाओं को सीखने-सिखाने और भाषा शिक्षण को लोकप्रिय बनाने हेतु प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग होगा। अभी तक त्रि-भाषा सूत्र देशभर में लागू नहीं है। भारत की सभी क्षेत्रीय भाषाओं, विशेष रूप से संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित सभी भाषाओं के लिए भाषा शिक्षकों की नियुक्ति हेतु केंद्र और राज्य दोनों प्रयास करेंगे। राज्यों में भारतीय भाषाओं के अध्यापन में शिक्षकों की नियुक्ति हेतु राज्य द्विपक्षीय समझौते कर सकेंगे।
विज्ञान और गणित के लिए गुणवत्तापूर्ण द्विभाषी पाठ्यपुस्तकें और शिक्षण सामग्री तैयार करने हेतु प्रयास किए जाएंगे, ताकि छात्र अपनी घरेलू भाषा/ मातृभाषा और अंग्रेजी माध्यम में विषय के बारे में सोचने-समझने तथा बोलने में सक्षम बन सके। भाषा, संस्कृति और परंपरा में शिक्षित होना, शैक्षिक, सामाजिक और तकनीकी उन्नति में सहायक है। भारतीय भाषाएं दुनिया की सबसे समृद्ध, वैज्ञानिक, सुंदर और अभिव्यंजक भाषाएं हैं, इनका साहित्य समाज तथा राष्ट्रनिर्माण में मददगार होगा।
माध्यमिक कक्षा में छात्र, भारत की भाषाओं पर परियोजना गतिविधियों में भाग लेकर छात्र प्रमुख भारतीय भाषाओं की एकात्मकता के बारे में सीखेंगे, जिसमें उनकी सामान्य ध्वन्यात्मक वैज्ञानिक वर्णमाला, लिपि, उनकी व्याकरण संरचनाएं, शब्द व्युत्पत्ति तथा शब्दावली शामिल हैं। छात्र सीखेंगे कि किसी भौगोलिक क्षेत्र की कौन-सी भाषा है, जनजातीय भाषाओं की प्रकृति और संरचनात्मक समझ बढ़ेगी, प्रमुख भाषाओं के वाक्यांश और वाक्य बोलना सीख सकेंगे।
भारत की शास्त्रीय भाषाओं में साहित्य के महत्त्व, प्रासंगिकता और सौंदर्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। संस्कृत भाषा लैटिन और ग्रीक की अपेक्षा कहीं अधिक समृद्ध है, जिसमें गणित, दर्शन, साहित्य, व्याकरण, संगीत, राजनीति आदि के विशाल भंडार हैं। संस्कृत सभी स्तरों पर छात्रों के लिए त्रि-भाषा के एक विकल्प में शामिल है। तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, ओड़िया सहित अन्य भारतीय शास्त्रीय भाषाओं में समृद्ध साहित्य है। इनके अलावा पाली, फारसी और प्राकृत जैसी भाषाओं को भी संरक्षित किया जाना है।
एनईपी में भाषाओं के संरक्षण हेतु सभी स्कूलों में समस्त छात्रों के पास दो साल तक किसी एक शास्त्रीय भाषा और साहित्य को सीखने का विकल्प होगा। माध्यमिक स्तर पर प्रौद्योगिकी सहित अनुभवात्मक-अधिगम के जरिए तथा उससे आगे भी जारी रखने के अवसर होंगे। छात्र माध्यमिक स्तर पर जापानी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, पुर्तगाली और रूसी जैसी विदेशी भाषाओं में भी अपना ज्ञान समृद्ध कर सकेंगे। भारतीय सांकेतिक भाषा को पूरे देश में मानकीकृत कर श्रवण बाधित छात्रों के उपयोग हेतु पाठ्य सामग्री विकसित की जाएगी।
आर्थिक विकास और रोजगार सृजन का प्रमुख जरिया शिक्षा है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्पष्ट है कि राज्य हो, संस्था या स्वयं छात्र, किसी पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। हालांकि यह मातृभाषा सहित भारतीय भाषाओं के सीखने की आवश्यकता पर जोर अवश्य देती है। इसी से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तार्किक रचनात्मकता को बढ़ाते हुए ‘क्या सोचें’ से ‘कैसे सोचें’ की ओर बढ़ने की कोशिश कर नए भारत की बुनियाद बनेगी।