बारह से अधिक मंत्री, साढे छह साल की सुशासन की भाजपा सरकार का रिपोर्ट कार्ड, खुद योगी आदित्यनाथ का घोसी की जनता से भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को जिताने की अपील करना, सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का घोसी को 50 हजार मतों के अंतर से जीतने का दावा करने का कोई असर घोसी के मतदाताओं पर नहीं हुआ। मतदाताओं ने दलबदल की सियासत को खारिज तो किया ही, सियासी अवसरवाद को पराजित कर ऐसा सबक सिखाया जिसका असर आने वाले चुनावों में दिखना लाजिमी है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा की जनता बार-बार हो रहे उपचुनाव से आजिज आ चुकी थी। 2017 से 2023 के बीच घोसी में चार बार चुनाव हुए। सियासतदानों ने घोसी को सियासी अवसरवाद की प्रयोगशाला बनाा दिया था। दारा सिंह चौहान 2022 में 22 हजार मतों से समाजवादी पार्टी के टिकट पर घोसी से जीते, लेकिन महज 14 महीनों में उनका सपा से मोह भंग हो गया और उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
इसका खामियाजा उन्हें हार की शक्ल में भुगतना पड़ा। सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को गलतफहमी थी कि वे राजभर मतदाताओें की बदौलत घोसी को भाजपा के पाले में लाने में कामयाब होेंगे। लेकिन घोसी की जनता ने उन्हें ऐसा सबक सिखाया कि अब उनकी सियासत ही सवालों के घेरे में आ खड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने बड़बोलेपन की वजह से मीडिया की सुर्खियां बटोरने वाले ओपी राजभर को घोसी की हार ने खामोश कर दिया है। उनका सियासी अवसरवाद भी अब सवालों के घेरे में है।
घोसी में हुए उपचुनाव ने बिना मैदान में उतरे बहुजन समाज पार्टी की परेशानी पर बल पैदा कर दिया है। एक दौर वह भी रहा जब घोसी को बहुजन समाज पार्टी का गढ़ कहा जाता था। दो बार घोसी से बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार जीते। फागू चौहान 2007 से बसपा के टिकट पर यहां से विधायक रहे। इस बार उपचुनाव में बसपा ने अपना उम्मीदवार घोसी के मैदान में नहीं उतारा।
इसकी वजह से उसका पारंपरिक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का मतदाता समाजवादी पार्टी के साथ चला गया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव काफी वक्त से बसपा के वोट बैंक में सेंधमारी करने की कोशिश कर रहे थे। इसमें उन्हें कामयाबी मिली। सपा को मिली इस सफलता ने मायावती को परेशानी में डाल दिया है। अपने पारंपरिक वोट बैंक के सपा के पाले में चले जाने की वजह से बसपा आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रख कर नई रणनीति बनाने मेंं जुटी है।
उधर, भाजपा को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह घोसी का उपचुनाव आखिर हारी क्यों? क्या दल बदल की वजह से मतदाताओं का गुस्सा हार की वजह बना? या सियासी समीकरण का पलट जाना और मुसलमानों और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं का सपा के पाले में खड़ा होना भाजपा की हार की वजह बना? इस पर मंथन जारी है।
पार्टी को इस बात का भी अब भय सता रहा है कि कहीं बसपा का वो वोट बैंक जो 2014 के लोकसभा चुनाव से लगातार उसके पाले में आ गया था, छिटक न जाए। इस भय ने भाजपा को पुन: सोचने को मजबूर कर दिया है। रही बात ओम प्रकाश राजभर की तो उनको लेकर भी भाजपा में चिंतन जारी है। घोसी की जीत पर सपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, घोसी की जीत ने इस बात की ताकीद कर दी है कि लोकसभा चुनाव में सपा ऐसा चमत्कार करेगी, जिसके बारे में अभी सत्ताधारी सोच भी नहीं सकते।