भारत में जी20 समिट का सफल आयोजन हो गया है। 20 मुल्कों के नेता ना सिर्फ भारत आए, बल्कि सभी ने तीन दिनों के भीतर एक ऐसी कूटनीति देखी जिसका जिक्र वे आने वाले कई सालों तक करते रहने वाले हैं। जो काम पिछले जी20 समिट में नहीं हो पाया, भारत की अध्यक्षता में, राजधानी दिल्ली में पीएम मोदी के हाथों वो संपन्न हो गया। इस जी20 समिट से तीन ऐसे सबसे बड़े प्रमाण मिले जो ये बताने के लिए काफी है कि इस बार भारत की कूटनीति बेजोड़ रही, पीएम मोदी की नेताओं के साथ आपसी केमिस्ट्री जमीन पर रंग लाई।
सबसे पहले बात रूस और यूक्रेन युद्ध क्योंकि इस मुद्दे पर जी20 देशों के नेताओं की राय हमेशा से ही बंटी रही है। बाली में जो जी20 समिट हुआ था, तब भी इस मुद्दे पर काफी मंथन के बाद भी आपसी सहमति नहीं बन पाई थी। उसका सबसे बड़ा कारण ये रहा कि बाली समिट के डिक्लेरेशन में सीधे-सीधे कह दिया गया कि रूस, यूक्रेन की धरती से हट जाए। यानी कि यूक्रेन का पक्ष लिया गया और रूस को अलग कर दिया गया। लेकिन पीएम मोदी ने अपनी कूटनीति की ताकत का अहसास करवाया, इसी वजह से जो दिल्ली डिक्लेरेशन रहा, उसमें कहीं भी रूस का जिक्र नहीं किया गया।
युद्ध के खिलाफ तमाम बातें लिखी गईं, सभी से एक दूसरे की संप्रभुता के सम्मान करने की बात भी हुई, लेकिन सीधे-सीधे रूस पर कोई निशाना नहीं साधा गया, कहीं भी राष्ट्रपति पुतिन का जिक्र तक नहीं हुआ। दिल्ली में जिस संयुक्त घोषणा पत्र को जारी किया गया, उसमें जगह ‘यूक्रेन में युद्ध’ लिखा गया। ये मायने रखता है क्योंकि पिछले घोषणा पत्र में साफ लिखा था ‘यूक्रेन के खिलाफ युद्ध’। जानकार मानते हैं कि भारत ने यहां पर शानदार बैलेंसिंग का खेल दिखाया है और इसी वजह से ना पुतिन नाराज हुए और ना ही जेलेंस्की को कोई ज्यादा आपत्ति हुई।
बड़ी बात ये है कि पीएम मोदी ने लगातार ही रूस-यूक्रेन युद्ध पर अपना एक ही स्टैंड रखा है- ये युद्ध का समय नहीं, कूटनीति और बातचीत के जरिए सबकुछ हल होना चाहिए। अब यहां ये समझना जरूरी है कि पीएम मोदी के इस गुरुमंत्र को भी संयुक्त घोषणा पत्र का हिस्सा बनाया गया है, यानी कि ये सभी देश पीएम मोदी से सहमत नजर आए हैं।
भारत की कूटनीतिक तो उस समय भी जीत गई जब जी20 समिट के पहले ही दिन पीएम मोदी ने आधिकारिक तौर पर अफ्रीकी यूनियन को भी इस संगठन का हिस्सा बनवा दिया। ये बात सही है कि मांग पुरानी थी, चर्चा भी लंबे समय से चल रही थी, लेकिन पीएम मोदी की अगुवाई में, भारत की धरती पर ये पहल सफल हुई, यानी कि सबसे बड़ी भूमिका हिंदुस्तान ने निभाई। अफ्रीकी यूनियन को कहने को बहुत संपन्न नहीं है, गरीबी भी चरम पर है, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के मामले में पूरी दुनिया उस पर निर्भर है। कई देश आगे बढ़कर वहां निवेश करना चाहते हैं।
ऐसे में अब पीएम मोदी ने अपना पुराना वादा निभाते हुए अफ्रीकी यूनियन को भी जी20 का हिस्सा बनवा दिया। इससे दो चीजें हुईं- पहली कई गरीब देशों को मुख्यधारा में आने का मौका मिला, दूसरी- दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी दुरुस्त करने का काम हुआ।
अब इस जी20 समिट के दौरान चीन ने ऐन वक्त पर जिस तरह से शी जिनपिंग के शामिल ना होने का ऐलान किया, उससे काफी कुछ स्पष्ट हो गया। इस समय भारत, अमेरिका का एक करीबी दोस्त बन गया है, बाइडेन-मोदी की केमिस्ट्री हर जगह चर्चा का विषय बनती है। ऐसे में उन तमाम पहलुओं से बचने के लिए चीन ने अपने पीएम को भारत भेजा। लेकिन यहां भी भारत की कूटनीति और राष्ट्रपति जो बाइडेन के समर्थन ने चीन को एक तगड़ा झटका देने का काम किया। जो चीन अपनी विस्तारवादी नीति के दम पर कई देशों को परेशान कर रहा है, एक ऐलान ने उसे असल आईना दिखा दिया।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत मध्य पूर्व यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर की घोषणा कर दी। भारत, यूएई, सऊदी अरब, EU, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए इसका निर्माण किया जाएगा। इस परियोजना के जरिए एक तिहाई वैश्विक अर्थव्यवस्था को सीधा फायदा पहुंचने वाला है। बड़ी बात ये है कि इस योजना में डेटा, रेल, बिजली और हाइड्रोजन पाइपलाइन को भी शामिल कर लिया गया है। अब चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट को हराने के लिए भारत ने जिस तरह से अमेरिका का साथ दिया है, ये भी अपने आप में उसकी नई और ज्यादा प्रबल कूटनीति का सूचक है।
इस पूरे जी20 समिट को एक दूसरे नजरिए से समझना भी जरूरी हो जाता है। भारत के लिए ये जी20 समिट उसकी संस्कृति की भी एक बड़ी जीत मानी जाएगी। असल में जिस स्थल भारत मंडपम में इस पूरे आयोजन को किया गया, संस्कृत में उसका मतलब मंदिर के गर्भग्रह से होता है। इसी तरह कोणार्क चक्र की जिस तरह ब्रैंडिंग की गई, पूरी दुनिया ने उससे भी भारत की संस्कृति को करीब से समझा। वहां भी पीएम मोदी ने राष्ट्रपति जो बाइडेन को जिस अंदाज में कोणार्क चक्र के बारे में समझाया, वो भी चर्चा का विषय बना।
यानी कि कुल मिलाकर कूटनीति की जीत, संस्कृति को नई पहचान और चीन को सच्चाई का आईना दिखाने में भारत पूरी तरह सफल हो गया है। इस जी20 समिट ने सिर्फ दुनिया को एक नई दिशा दिखाने का काम नहीं किया है, बल्कि भारत की बढ़ती ताकत का भी पूरी तरह अहसास करवा दिया है।