महाराष्ट्र की शिंदे सरकार के मंत्री छगन भुजबल इन दिनों मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल के निशाने पर हैं। मराठा आरक्षण के लिए आमरण अनशन करके सारे देश में चर्चित हो चुके मनोज जरांगे पाटिल ने पिछले हफ्ते मांग की थी कि मराठा वर्ग को ओबीसी आरक्षण में ही हिस्सेदार बनाया जाए। इसके विरोध में खुलकर आए एनसीपी (अजित पवार) के छगन भुजबल।
कभी शिवसेना के कद्दावर नेता और ओबीसी चेहरा माने जाते थे भुजबल। सूबे की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी रहे। मनोज जरांगे पाटिल के दबाव में महाराष्ट्र सरकार मराठा समुदाय को हजारों कुनबी प्रमाणपत्र जारी कर चुकी है। यह प्रमाणपत्र ओबीसी होने का सबूत है। भुजबल ने इसके लिए अपनी ही सरकार की आलोचना भी की थी। इससे मनोज जरांगे पाटिल भड़क गए। पुणे में कहा कि मराठा कभी भी ओबीसी के साथ जातीय दंगे नहीं होने देंगे।
भुजबल का पूरा इतिहास ही दोहरा दिया कि कैसे सड़क पर सब्जी बेचते हुए वे अरबपति बने। मनोज जरांगे ने भुजबल को धमकी दी कि अब वे मराठा आरक्षण की आलोचना करने वालों का भंडाफोड़ करेंगे। मनोज जरांगे की नाराजगी से परेशान अजित पवार को अपने विधायकों की बैठक बुलाकर सलाह देनी पड़ी कि किसी को मनोज जरांगे से उलझने की जरूरत नहीं। इसी बैठक में अजित पवार समर्थक मराठा विधायकों ने भी नाम लिए बिना छगन भुजबल पर जमकर वार किए।
राजस्थान चुनाव से पहले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह की 21 दिनों के लिए रिहाई कर दी गई। राम रहीम बलात्कार और हत्या के जुर्म में 2017 से जेल में है। 2022 के बाद यह पांचवीं बार है जब उसे जेल से बाहर आने की इजाजत मिल गई है। राम चंदर छत्रपति के बेटे ने मीडिया में हरियाणा सरकार के इस व्यवहार पर सवाल उठाया है। सवाल उठने के बाद हरियाणा के जेल मंत्री ने कहा कि राम रहीम की रिहाई का चुनाव से कोई रिश्ता नहीं है।
मामला पूरी तरह से जेल अधिकारी और उससे संबंधित विभाग से जुड़ा है। राज्य सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं है। छत्रपति के बेटे ने आरोप लगाया कि हरियाणा की वर्तमान सरकार ने राम रहीम के अनुरूप हरियाणा अच्छा आचरण कैदी (अस्थायी रिहाई) अधिनियम, 2022 पारित किया। इसके बाद राम रहीम के लिए जेल के बाहर आना और भी सुविधाजनक हो गया।
राजौरी में 22 नवंबर की रात शहीद हुए कैप्टन शुभम गुप्ता आगरा के कुआंखेड़ा गांव के मूल निवासी थे। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री योगेंद्र उपाध्याय पहुंचे तो थे दुखी परिवार को सांत्वना देने और आर्थिक सहायता का चेक सौंपने। शुभम के परिवार में उसकी शहादत से कोहराम मचा था।
पर मंत्री जी के साथ गए उनके सहयोगियों को तो सांत्वना देने और पचास लाख रुपए का चेक सौंपने को भी एक इवेंट के तौर पर रिकार्ड करने की हड़बड़ी थी। रोती-बिलखती शुभम की मां से जब मंत्री के एक सहायक ने सामूहिक फोटो के लिए आग्रह किया तो वे भारी मन से बोली-मेरी प्रदर्शर्नी मत लगाओ, मुझे मेरा बेटा वापस ला दो। इसके बाद भी कैमरा क्लिक होता रहा।
राजस्थान में मतदान शनिवार को होगा। भाजपा को रिवाज पर ज्यादा भरोसा है। रिवाज सूबे में हर बार सरकार बदलने का रहा है। वहीं कांगे्रस को अशोक गहलोत सरकार की लोक-लुभावन योजनाओं और धरातल पर हुए काम के बूते फिर सत्ता में वापसी का भरोसा है। मुख्यमंत्री का चेहरा दोनों में से किसी ने पहले से घोषित नहीं किया। हां इतना स्पष्ट है कि कांगे्रस में घोषित दावेदार अशोक गहलोत और सचिन पायलट ही हैं।
भाजपा में स्वाभाविक दावेदारी दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे की है, लेकिन आलाकमान ने तो पूरे प्रचार अभियान में एक ही मंत्र दोहराया कि उम्मीद और उम्मीदवार दोनों ही कमल का निशान है। आलाकमान अब राजे को मुख्यमंत्री बनाने के मूड में नहीं दिखता। नतीजों के बाद अगर कांगे्रस की वापसी हुई तो दावेदार का झगड़ा उसकी समस्या होगी।
पर, सरकार भाजपा की बनी तो वसुंधरा क्या रणनीति अपनाएंगी, इस पर सबकी नजर रहेगी। महिला उम्मीदवार के तौर पर आलाकमान पहले ही जयपुर राजघराने की राजकुमारी और सांसद दिया कुमारी को मैदान में उतार चुका है। दावेदार सतीश पूनिया और गजेंद्र सिंह शेखावत भी हैं ही। लेकिन वसुंधरा के करीबियों का दावा है कि पार्टी अगर बहुमत से कुछ पीछे रही तभी वसुंधरा अपने तेवर दिखा पाएंगी। पार्टी के कितने विधायक उनके समर्थन में बगावत करने को तैयार होंगे, इसी से तय होगी वसुंधरा की सौदेबाजी की हैसियत।
अगर विपक्ष पर जांच एजंसी की टेढ़ी नजर होती है तो फिर सत्ता में आते ही मेहरबानी भी शुरू हो जाती है। कर्नाटक विधानसभा मंत्रिमंडल ने गुरुवार को कहा था कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में शिवकुमार के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीबीआइ को मंजूरी देने का भाजपा सरकार का फैसला कानून के अनुरूप नहीं था।
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में उपमुख्यमंत्री और कर्नाटक कांग्रेस के प्रमुख शिवकुमार शामिल नहीं हुए। माना जा रहा है कि अब कांग्रेस सरकार इस मामले में सीबीआइ को दी गई मंजूरी वापस लेने का आदेश जारी कर सकती है। वहीं शिवकुमार ने पत्रकारों से कहा कि मैंने अखबार में देखा। मैं कल मंत्रिमंडल की बैठक में शामिल नहीं हो सका। जिसे भी इस बारे में बोलना होगा, वह बताएगा।
वह चुनाव प्रचार में शामिल होने के लिए दो दिन के लिए तेलंगाना जा रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर पार्टी मुझसे प्रचार की अवधि बढ़ाने के लिए कहेगी तो मुझे ऐसा करना होगा। शिवकुमार के घर और कार्यालयों पर 2017 में आयकर विभाग द्वारा ली गई तलाशी के आधार पर, प्रवर्तन निदेशालय ने उनके खिलाफ अपनी जांच शुरू की थी।
संकलन : मृणाल वल्लरी